एक ऐसा समय जब लोग इंसानी मास खाने को मजबूर हो गए थे सन् 536
दोस्तों साल 2020 और 21 में हम सब ने कोरोना महामारी का सामना किया सभी को पता है यह कितना भयानक समय लेकिन एक ऐसा समय जब लोग इंसानी मास खाने को मजबूर हो गए थे सन् 536 था काफी लोगों को लगता होगा इससे खराब परिस्थिति इतिहास में कभी नहीं आई होगी।
पर यकीन मानिए इतिहास में इससे भी कई गुना भयानक घटनाएं घट चुकी है साल 1347 को द ब्लैक डेथ नाम के एक महामारी के चलते यूरोप का लगभग 50% पापुलेशन खत्म हो गया था साल 1918 को स्पेनिश फ्लू के चलते तकरीबन दो करोड़ से भी ज्यादा लोगों की जान गई थी और साल 1941 से 45 के बीच होलो कोस्ट के चलते हिटलर की नाजी सेना ने 60 लाख से ज्यादा यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया था।
फिर आपके मन में एक सवाल जरूर आया होगा की इससे खतरनाक और क्या ही हो सकता है दोस्तों चलिए आगे हम इसके बारे में जानेंगे
यह है हावर्ड यूनिवर्सिटी के एक हिस्ट्री प्रोफेसर माइकल मैक कर्मिक
यहां माइकल का जवाब था सन 536 एडी उनका कहना था यह वह दर्दनाक साल है जहां वह गलती से भी कभी जाना नहीं चाहेंगे पर साल 536 में क्या हुआ था क्यों इसे इतिहास का सबसे बुरा साल कहा जाता है दोस्तों इस आर्टिकल में आपको इन सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा।
साल 536 के पहले कुछ दिन किसी साधारण दिन की तरह ही बीते थे पर एक सुबह लोगों को आसमान में कुछ अजीब घट रहा दिखता है अचानक से घने काले बादल पूरे आसमान को ढक देते हैं इन काले बादलों ने पूरे यूरोप मिडिल ईस्ट और एशिया के एक बड़े हिस्से को घने अंधेरे में ढकेल दिया था तकरीबन 18 महीनों तक आधी दुनिया अंधेरे में ही रही क्योंकि घने बादलों ने सूरज को पूरी तरह से ढक रखा था।
इसीलिए गर्मियों में भी तापमान तकरीबन ढाई डिग्री सेल्सियस था सूरज की रोशनी ना पड़ने की वजह से सारे फसल बर्बाद हो रहे थे और धीरे-धीरे लोग भूखमरी से मरने लगे कहा जाता है यह भूखमरी इतिहास का सबसे खतरनाक भुखमरी था इस समय लोग खाने के कमी की वजह से अपने पालतू जानवरों का मांस भी खाने लगे थे कुछ जगहों पर परिस्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि लोग मरे हुए लोगों के शरीर को भी खाने लगे थे।
साल 536 से 46 तक का पूरा डिकेड पिछले 2300 साल बाद सबसे ठंडा डिकेड था इस दौरान चाइना में गर्मी के मौसम में भी बर्फ पड़ने लगी थी आयरिश क्रॉनिकल से पता चलता है आयरलैंड में 536 से 539 तक खाने का भयानक आकाल पड़ा था जिसमें हजारों लोगों की जान गई थी साल 541 में ईस्टर्न रोमान एंपायर में जस्टिया निक प्लेग नाम की एक महामारी फैली थी।
जिसमें तकरीबन ढाई करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवाई थी उस समय चारों तरफ इतनी भयानक माहौल हो गया था कि लोग मान चुके थे कि यह सब भगवान ही करवा रहे हैं और दुनिया खत्म होने ही वाला है सालों तक उस समय बने इन काले घने बादलों का राज एक राज ही बना रहा पर सालों के रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने इसका पता लगा लिया है।
दरअसल उस दौरान साल 536 के शुरुआत में आइसलैंड में एक बहुत बड़ा वोल्कानिक एक्सप्लोजन हुआ था उस ज्वालामुखी के फटने के वजह से पृथ्वी के एक बड़े हिस्से में राख फैल गई और इसी वजह से चारों तरफ उन घने बादलों का निर्माण हुआ था इस ज्वालामुखी के एक्सप्लोजन ने ग्लोबल क्लाइमेटिक पैटर्न को पूरी तरह से बदल दिया था इसके बाद भी साल 540 और 547 को दो और एक्सप्लोजन हुए थे।
और यह सारी घटनाएं इतनी विनाशकारी थी कि यूरोप को इससे रिकवर होने में एक पूरी सदी का समय लग गया था इन्हीं कारणों के वजह से से सिक्सथ सेंचुरी को डार्क एज के रूप में याद किया जाता है हिस्टोरियंस कहते हैं सिक्सथ सेंचुरी में जिंदगी जीना एक राजा के लिए भी उतना ही भयंकर था जितना एक साधारण इंसान के लिए।
ऐसे मालूम चलेगा वो आपको पसंद करती है करता है या नही।
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