कैसे एक गरीब जर्मनी के लड़के ने मर्सिडीज जैसी इतनी बड़ी कंपनी बना है। दिलचस्प है इनकी स्टोरी

कैसे एक गरीब जर्मनी के लड़के ने मर्सिडीज जैसी इतनी बड़ी कंपनी बना है। दिलचस्प है इनकी स्टोरी

कैसे एक गरीब जर्मनी के लड़के ने मर्सिडीज जैसी इतनी बड़ी कंपनी बना है। दिलचस्प है इनकी स्टोरी
कैसे एक गरीब जर्मनी के लड़के ने मर्सिडीज जैसी इतनी बड़ी कंपनी बना है। दिलचस्प है इनकी स्टोरी

यह स्टोरी है एक ऐसे बच्चे की जिसका बाप 2 साल में ही मर गया और उसकी मां ने उसे बहुत मेहनत से पाला जिसे बिजनेस में अपने बिजनेस पार्टनर से धोखा मिला लेकिन इसके बावजूद उसने सदी की सबसे लग्जरी कार बनाई।

(mercedes-benz) ये कार इतनी फेमस हुई की ये हिटलर की सबसे खास कार बन गई लेकिन इस लक्जरी कार का एक काला सच भी है। वो ये की हिटलर के कहने पर इन्होंने 63000 मजदूरों से जबरदस्ती अपनी फैक्ट्री में काम करवाया।

और इससे भी इंटरस्टिंग बात ये है की ये जो वर्ड है मर्सिडीज  ये एक अमीर आदमी की बेटी का नाम है। लेकिन उसकी बेटी के नाम से ये कार का नाम क्यों पड़ा? अगर आप अगर आप इन सारे सवालों के जवाब जानना चाहते है तो ध्यान से पढ़िए इस आर्टिकल को।

कार्ल बेंज का जन्म 25 नोबेम्बर 1944 को मुल्हबर्ग जर्मनी में हूवा था उनके डैड एक लोकोमोटिव ड्राइवर थे ( ट्रेन के) और मां एक हाउसवाइफ जब कार्ल बेंज 2 साल के थे तो उनके डैड की डेथ हो गई और उनकी मां को अलग-अलग जगह पर काम करना पड़ा उन्हें पालने के लिए।

कार्ल बेंज ने अपनी मां की मेहनत को देखा और वो एक अच्छे स्टूडेंट बने 15 साल की एज में उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग का एग्जाम क्वालीफाई किया और काल श्रू पॉलिटेक्निकल स्कूल में एडमिशन ले ली इंजीनियरिंग की पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद उन्होंने सात अलग-अलग जगह पर नौकरियां करी।

उन्होंने लोहे की कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम किया कभी वो ड्राफ्ट्समैन की तरह काम करते और कभी डिजाइनर बन जाते जॉब करते-करते वो अपने एनवायरमेंट को देखते और उन्हें एक चीज क्लियर हो गई और वो यह थी कि आगे चलके जो हॉर्स कैरेजेस हैं यानी घोड़ा गाड़ी वो नहीं होंगे और ऐसी कार बनाई जाएंगी जो खुद से सड़को पर चल पाएगी।

कार्ल बेंज ने 27 साल की एज में अपनी नौकरी छोड़ दी और एक मैकेनिक को अपना बिजनेस पार्टनर बना दिया इस बिजनेस पार्टनर का नाम था ऑगस्ट रिटर और इन दोनों ने मिलकर एक लोहे का कारखाना खोला अपने फ्री टाइम में मिस्टर बेंज हमेशा ऐसी कार बनाने में लगे रहते जो खुद चल पाए।

कैसे एक गरीब जर्मनी के लड़के ने मर्सिडीज जैसी इतनी बड़ी कंपनी बना है। दिलचस्प है इनकी स्टोरी

कार्ल अपने इंजन के काम में बिजी क्या हुए की उनके दोस्त ने धोखा दे दिया काल को पता नहीं चल रहा था कि वो क्या करें क्योंकि उनके बिजनेस पार्टनर और गस्त रिटर के पास भी कंपनी के शेयर्स थे और इसी वजह से कार्ल इस कंपनी को नहीं छोड़ सकते थे क्योंकि उनका खाने पीने का सारा पैसा इसी लोहे के कारखाने से आता था।

लेकिन इस बुरी सिचुएशन में एक लड़की ने उनकी मदद करी और इस लड़की का नाम था बर्था रिंगर जो कि आगे चलकर उनकी वाइफ बनी अब हुआ ये कि बर्था के घर वालों ने उसके दहेज के लिए कुछ पैसे सेव किए हुए थे अब बर्थ ने क्या किया कि इन पैसों में से उसने कुछ पैसे लिए और उससे ऑगस्ट रिटर के सारे शेयर्स खरीद लिए।

जिसकी वजह से अब उस लोहे के कारखाने के सिर्फ दो मालिक थे बर्था और मिस्टर कार्ल बेंज और अगले 10 सालों तक इन्होंने बहुत से पेटेंट अपने नाम किए जैसे कि एक पेटेंट उन्हें मिला कि इंजन की बैटरी को इग्नाइट कैसे किया जा सकता है दूसरा पेटेंट गियर शिफ्ट बनाने के लिए मिला तीसरा क्लच के लिए चौथा कार्बोरेटर बनाने के लिए पांचवा इंजन को ठंडा रखने के लिए छठा पेटेंट था स्पार्क प्लग पर और सात सावा स्पीड रेगुलेटर के लिए इतने पेटेंट्स लाने के बाद भी यह कंपनी पैसे नहीं कमा रही थी।

जिसकी वजह से मिस्टर कार्ल बेंच क्या करते है कि वह कंपनी के कुछ शेयर्स इन्वेस्टर को बेच देते और उसके बदले में पैसे लेते और ये प्रोसेस चलता रहा और एंड में कार्ल बेंच के पास सिर्फ कंपनी के 5% बचे जिसकी वजह से जो सारे बाकी के इन्वेस्टर्स थे उन्होंने काल को डिमोट कर दिया यानी छोटी पोजीशन पर लगा दिया।

और कार्ल बहुत दुखी हुए मिस्टर बेंज को पता चल चुका था कि इस कंपनी में रहकर उनके सपने पूरे नहीं हो सकते और उन्होंने ये कंपनी छोड़ दी और दोबारा से वह जीरो पर आ गए कुछ हफ्तों के बाद बेंज दो भाइयों से मिले जिनका नाम था मैक्स रोस और फ्रेडरिक विल्हेम जो कि दोनों एक साइकिल शॉप के ओनर थे।

इन तीनों ने मिलकर एक नई कंपनी बनाई जिसका नाम रखा गया बेंज एंड सी इस कंपनी को जल्दी सक्सेस मिल गई बेंज को यहां पर बहुत टाइम मिल रहा था अपने इंजन पर काम करने के लिए और 1885 में उन्होंने एक ऐसी कार बनाई जो खुद चल सकती थी और इसे पेटेंट भी करवाया और इसे नाम दिया गया बेंज पेटेंट मोटर वैगन इसकी मैक्सिमम स्पीड 16 किमी पर आवर थी।

कैसे एक गरीब जर्मनी के लड़के ने मर्सिडीज जैसी इतनी बड़ी कंपनी बना है। दिलचस्प है इनकी स्टोरी

अब ये जो मॉडल वन था इसे कंट्रोल करना बहुत ही डिफिकल्ट था और एक बार पब्लिक डेमोंस्ट्रेट हो रही थी और ये मॉडल जाके सीधा दीवार से टकरा गया जिसकी वजह से जो मॉडल था ये बहुत ही कम बिका अगले ही साल यानी 188 में इन्होंने मॉडल टू निकाला और 2 साल के बाद मॉडल थ्री मिस्टर बेंज की वाइफ बर्था को यकीन था कि ये मॉडल 3 बहुत अच्छा है।

और इसे ज्यादा बेचने के लिए इसकी पब्लिसिटी की जानी चाहिए लेकिन मिस्टर बेंज इससे राजी नहीं थे वो जानते थे कि यह मॉडल वन जैसे कहीं टकरा गया तो ये दोबारा से मॉडल्स नहीं बिकेंगे इसलिए वो इसकी पब्लिसिटी नहीं कर रहे थे फिर 4th अगस्त 1888 को बर्था ने कुछ डिसाइड किया वो रात को छुपके से अपने पांच बच्चों के पास गई उनमें से दो बच्चों के कान में उसने कुछ कहा और आके वापस अपने हस्बैंड के साथ लेट गई।

अब अगली सुबह उसने जो किया उसके बारे में किसी ने भी नहीं सोचा था कि बर्था एक ऐसा स्टेप उठा सकती है बथा बेंस अगले दिन छुपके से उठी उसने अपने दो बेटे रिचर्ड और यूजन को साथ में लिया गैराज से बेंज मॉडल 3 निकाली और कार स्टार्ट की और अपनी मां के पास निकल गई जो कि 106 किमी दूर था।

रास्ते में जब कई लोगों ने उसे देखा तो वो डर के मारे भूत भूत चिल्लाने लग गए किसी को पता नहीं चल रहा था कि ये चीज क्या है जो खुद चली जा रही है और उसे चलाने के लिए कोई हॉर्स नहीं लेकिन मिसेस बेंच फिर भी चलती रही उस वक्त मॉडल 3 में सिर्फ 4.5 लीटर फ्यूल ही आता था।

कैसे एक गरीब जर्मनी के लड़के ने मर्सिडीज जैसी इतनी बड़ी कंपनी बना है। दिलचस्प है इनकी स्टोरी

उसने लिग्रोयन जो कि पेट्रोलियम सॉल्वेंट था उसे खरीदने के लिए गाड़ी को एक फार्मेसी की दुकान में रोका क्योंकि उस जमाने में कोई पेट्रोल पंप नहीं था उस फार्मेसी की दुकान से लिग्रॉइन खरीदा और उसे कार में डाल दिया सबसे इंटरेस्टिंग बात तो यह है कि जर्मनी में ये जो फार्मेसी की दुकान थी इसे आज फर्स्ट फ्यूल स्टेशन ऑफ द वर्ल्ड कहा जाता है यानी सबसे पहला पेट्रोल पंप।

इसके अलावा उस वक्त कौन से अच्छे रोड थे इसलिए बीच-बीच में गाड़ी खराब हो जाती बार-बार बर्था कार को रोकती बच्चों को नीचे उतारती कार को अपने हेयर पिन से रिपेयर करती और दोबारा से कार का कुछ किलोमीटर कंप्लीट करती बीच में उनकी कार ब्रेक्स पूरे तरीके से घिस गई थी क्योंकि वो लकड़ी की थी तो बर्था ने कार को एक मोची की दुकान प रोका और लेदर की ब्रेक्स लगवाई इस 106 किमी को कवर करने के लिए बथा और उसके दो बेटों को 12 घंटे का समय लगा।

वहां पहुंचकर उन्होंने टेलीग्राम से अपने हस्बैंड को बताया कि वो अपने मां के घर पहुंच चुकी है थोड़े दिनों के बाद वह इसी कार में वापस कार्ल बेंज के पास आई इस ट्रिप से इन दोनों के बिजनेस को बहुत पब्लिसिटी मिली इवन कि ब्रेक की इंप्रूवमेंट्स के बारे में भी बर्था ने काल को बताया जिसकी वजह से इस डिजाइन को चेंज कर दिया गया और इस तरीके से पहली बार एक वाइफ ने अपने हस्बैंड की इन्वेंशन को दुनिया के सामने  लाया।

बर्था की इस एक्टिविटी से कंपनी को बहुत पब्लिसिटी मिली और इनका इंटरनल कंबशन इंजन बहुत बिका और बेंज दुनिया की सबसे बड़ी ऑटोमोबिल कंपनी बन गई और 1899 में इन्होंने पूरी दुनिया में 572 कार्स बेची ये नंबर उस वक्त के लिए बहुत बड़ा है क्योंकि सारे लोग सिर्फ घोड़ा गाड़ी यूज करते थे और सिर्फ अमीर लोग ही इन कार्स को अफोर्ड कर पाते थे।

इस वक्त बेंज की कंपनी बहुत अच्छी चल रही थी लेकिन एक और कंपनी थी जो इनकी कंपतीतर बन गई और वो बेंज की तरह ही बहुत अच्छी कार्स बना रही थी इस कैंप्टेटर का नाम था डाइमर मोटर्स अब इसमें दो पार्टनर्स थे गली डाइमर और विल्हेम मेबैक अब ये दोनों थे तो इंजीनियर्स ही लेकिन जो डाइमर थे वो एक बहुत अच्छे बिजनेसमैन भी थे वो जानते थे कि अपने बिजनेस से मैक्सिमम प्रॉफिट कैसे निकालना है।

लेकिन ये समझ और उतने अच्छे बिजनेसमैन मिस्टर कार्ल बेंज नहीं थे 1887 में डेयमर मोटर फ्रंट इंजन मोटर कार बन चुकी थी जोकि आज की कार्स जैसी दिख रही थी यानी की बेंज की गाड़ियों गाड़ियों से भी अच्छी दिख रही थी और इसके बाद डायमंड मोटर्स ने बनाई अपना मास्टर पीस जो कि था मर्सिडीज 35hp अब इस कार का नाम मर्सिडीज़ क्यों पड़ा इसके पीछे पीछे की स्टोरी भी बहुत इंटरेस्टिंग है।

उस वक्त एक अमीर बिजनेसमैन था जिसका नाम था एमिल जैलनीन जो की बहुत सी कार्स बेचता था आज के जमाने में हम कह सकते है की उसका एक शोरूम था उसने डाइमर मोटर कंपनीज के मालिकों को कहा मैं तुम्हे बहुत बड़ा ऑर्डर दे सकता हु।

लेकिन मेरी 2 शर्ते है शर्त no. 1 ये जो नई कार है पुराने माडल से सबसे बेस्ट होनी चाहिए।

शर्त no. 2 इस कार का नाम मेरी बेटी मर्सिडीज़ के ऊपर रखा जाएगा डायमर कंपनीज के मालिकों ने यह बात मान ली और यह मॉडल बहुत ही फेमस हुआ इसके बाद जर्मनी के इकोनॉमिक हालात अच्छे नहीं थे जिसकी वजह से दोनों बेंज और डाइमर की कार्स नहीं बिक रही थी अब इन दोनों कंपनीज ने डिसाइड किया कि इन्हें मर्ज कर जाना चाहिए।

और इन्होंने एक्चुअल में किया भी ऐसा ही और इस कंपनी को नाम दिया गया डाइमर बेंज कंपनी इसके बाद जितने भी मॉडल्स इन दोनों कंपनी ने निकाले उन्हें डामर बेंज कहने के बजाय इन्होंने mercedes-benz कहा।

जैसे कि मर्सिडीज माडल S और ssk इन सारे मॉडल्स को एक बहुत ही फेमस डिजाइनर ने डिजाइन किया था जिसका नाम था फर्डिनेंड पोर्चे ये नाम आपने जरूर सुना होगा अप्रैल 1929 में कार्ल बेंज की डेथ हो गई जब वो 84 इयर्स के थे और इसके बाद एंट्री हुई डल्फ हिटलर  की हिटलर को mercedes-benz इतनी पसंद थी कि वो खुद भी उसमें ट्रेवल किया करते थे।

हिटलर चाहता था कि पूरी दुनिया को पता चले कि जर्मनी की कार्स ही सबसे बेस्ट है इसलिए उसने डायमर बेंज कंपनी को कहा कि तुम ऐसी कार बनाओ जो दुनिया में सबसे तेज हो और हुआ भी ऐसा ही जितने भी उस वक्त वर्ल्ड में कार रेसेस हुई उसमें से मैक्सिमम रेस बेंज की कार ने जीती एक और कंपनी उस वक्त ये कार रेस जीत रही थी जिसका नाम था ऑटो यूनियन लेकिन ये भी जर्मनी की ही कंपनी थी फिर 1939 में वर्ल्ड वॉर सेकंड स्टार्ट हो गई।

सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान हिटलर ने जर्मनी की मैक्सिमम कंपनीज को कहा कि वो अब सिर्फ आर्मी के लिए प्रोडक्ट्स बनाएंगी इसलिए डाइमर बेंज कंपनी ने भी अपना मेन प्रोडक्शन बंद कर दिया और जर्मनी के लिए व्हीकल्स और ट्रक्स बनाना स्टार्ट कर दिया हिटलर ने जब बेंज कंपनी को और ट्रक बनाने के लिए कहा तो पहले तो बेंज कंपनी ने विमेन वर्कर हायर करे लेकिन जब इससे भी बात नहीं बनी तो जो ज्यूज प्रिजनर थे उन्हें वर्कर बना के उनसे जबरदस्ती काम करवाया।

एक टाइम पर 63000 प्रिजनर बेंज कंपनी के लिए काम कर रहे थे जब जर्मनी वॉर हार गई तो इन कंपनीज की इमेज बहुत खराब हो गई कि इन्होंने प्रिजनर से जबरदस्ती काम करवाया है जो कि डाइमर बेंज कंपनी ने एक्सेप्ट भी किया जो भी जर्मनी के अलावा फॉरेन में इनके मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स थे वो इनसे ले लिए गए और सिर्फ जर्मनी वाले मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स इनके पास बचे।

अब इसके बाद इस कंपनी ने अपनी इमेज बिल्ड करना स्टार्ट किया इन्होंने पहले एंबुलेंस बनाई और उसके बाद पुलिस के लिए व्हीकल्स बाद में दोबारा से कॉमन लोगों के लिए इन्होंने गाड़ियां बनाना स्टार्ट कर दिया।

अगर मैं फाइनेंशियल ईयर 2022 की बात करूं तो उन्होंने 24 लाख गाड़ियां बेची जिसकी टोटल वैल्यू थी 13640 बिलियन इंडियन रुपए जो कि tata मोटर से 3.5 गुना है और आज मर्सडीज बेंज की इन्होंने इतनी अच्छी इमेज कर दी है की कोई मर्सिडीज गाड़ी खरीदता है तो वो इतना खुश लगता है जैसे उसने IAS का एग्जाम क्लियर कर दिया हो या फिर कोई यूनिकॉर्न बना दी हो

अगर हम सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद की बात करें तो उन्होंने एक के बाद एक लग्जरी कार लॉन्च की है  वैसे क्या आपको पता है कि इंडिया में हर 1000 में से 750 गुजराती कार ओन करते हैं इसका मतलब है इंडिया में सबसे ज्यादा कार्स गुजरातियों के पास हैं।

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