क्या है Zen-Z जेनरेशन और क्यों इसे अब तक का सबसे बेकार जेनरेशन कहां जा रहा है?
(Zen-Z) जन जी ये वर्ड सोशल मीडिया पर आपने कभी ना कभी जरूर सुना होगा इंटरनेट पर हर कोई जन जी के बारे में बात कर रहा है लेकिन आखिर क्या है ये Zen-Z और क्यों लोग इस बारे में इतना बात कर रहे हैं
Zen-Z असल में एक ह्यूमन जनरेशन है यानी कि जो भी लोग 1995 से लेकर 2012 के बीच में पैदा हुए हैं वो सभी के सभी जेन जी कैटेगरी में आते हैं और जिनकी भी एज 12 से लेकर 30 साल के बीच में है वो लोग जनजी है और जेंज पर इतनी बात इसीलिए हो रही है क्योंकि कई लोगो का ऐसा मानना है कि जेंज आज तक की सबसे bekar जनरेशन है
देखो हर तीन में से एक जेंन जी अभी 18 से 24 की एज का है वो किसी ना किसी मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम जैसे कि डिप्रेशन या फिर एंजाइटी डिसऑर्डर से जूझ रहा है एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडिया में 25 से कम एज के लोगों में 42% लोग अनइंप्लॉयड है यानी मोस्ट ऑफ द जेंन जी अनइंप्लॉयमेंट का भी शिकार है
अमेरिका में 61% जेन जी ने ये रिपोर्ट किया है कि वो अकेला महसूस करते हैं और इन्हीं रिपोर्ट्स को देखते हुए ही एक्सपर्ट्स जेन जी को फिजिकली मेंटली फाइनेंशली और सोशली हर एस्पेक्ट्स पर आज तक की सबसे खराब जनरेशन बता रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों है
जेंन जी के साथ आखिर प्रॉब्लम क्या है और क्या इसको किसी तरह से फिक्स किया जा सकता है ऑथर माइकल हॉफ का एक बहुत ही फेमस कुछ बाते है
(हार्ड टाइम्स क्रिएट स्ट्रांग मैन स्ट्रांग मैन क्रिएट्स गुड टाइम्स गुड टाइम्स क्रिएट वीक मैन वीक मैन क्रिएट हार्ड टाइम्स)
तो अगर आप यहां पर जनरेशन का हिस्ट्री देखोगे ना तो जो ओल्ड जनरेशन थी वो बहुत ही टफ टाइम से गुजरी थी और उनके पास कभी भी इतने ज्यादा रिसोर्सेस अवेलेबल ही नहीं थे जितने कि आज के लोगों के पास है।
जैसे कि जो लोग 1901 से लेकर 1924 के बीच में पैदा हुए थे उन्हें द ग्रेटेस्ट जनरेशन कहा जाता था क्योंकि उन्होंने वर्ल्ड वॉर वन को झेला था और फिर ग्रेट डिप्रेशन को झेला और फिर इसी जनरेशन ने आगे चलकर वर्ल्ड वॉर 2 को भी लड़ा इसीलिए इसको ग्रेटेस्ट जनरेशन कहा जाता है
इसके बाद साल 1924 से 1945 के बीच जो लोग पैदा हुए थे उनको द साइलेंट जनरेशन कहा जाता है ये वो लोग हैं जिन्होंने सेकंड वर्ल्ड वॉर के कंसीक्वेंसेस को झेला और कॉलोनियलिज्म जैसे प्रॉब्लम्स को साइलेंटली सहन किया
इसके बाद साल 1948 से 1964 के बीच आई थी द बेबी बूमर जनरेशन जिसने दुनिया भर की गिरती हुई पॉपुलेशन को बढ़ाया इसके बाद साल 1965 से 1979 के बीच जो लोग पैदा हुए थे वो जनरेशन एक्स कहलाए गए इस जनरेशन ने एड्स जैसी खतरनाक बीमारियों का सामना किया है और इसके बाद जो साल 1980 से 1994 के बीच पैदा हुए थे उन्हें मिलेनियल कहा जाता है
अब इस जनरेशन ने भले ही किसी वर्ल्ड वॉर या फिर पेंडम का सामना ना किया हो लेकिन कई सारे फाइनेंशियल चैलेंज का सामना मिलेनियल को करना पड़ा और इसके बाद जो जनरेशन साल 1995 से 2010 के बीच पैदा हुए उन्हें जूमर्स या शॉर्ट में जनजी कहा जाता है देखो मोस्ट ऑफ द जेंज की लाइफ ना शुरू से ही बहुत इजी रही है
हर तरह की फैसिलिटी और लग्जरी इस जनरेशन को मिली है और इस जनरेशन के लोगों ने हार्ड टाइम बहुत ही कम देखा है वो नहीं जानते कि बिना स्मार्टफोन के रहना क्या होता है वो ये नहीं जानते कि बिना इलेक्ट्रिसिटी की जिंदगी कैसी होती है वो नहीं जानते कि बिना एसी के गर्मियां कैसी काटी जाती है वो नहीं जानते कि भूखे पेट रहकर काम कैसे किया जाता है
तो इसी वजह से होता क्या है कि जब लाइफ में कोई ज्यादा चैलेंज नहीं होता तो छोटी-मोटी प्रॉब्लम्स भी बहुत बड़ी फील होने लगती है और दोस्तों इसीलिए आज की जनरेशन के लोग सिर्फ मार्क्सस कम आने की वजह से या किसी के इंसल्ट कर देने भर से ही डिप्रेशन में में चले जाते हैं
ऐसा नहीं है कि पहले की जनरेशन के लोग किसी चीज में फेल नहीं होते थे फेल वो भी हुए थे लेकिन डिप्रेशन और एंजाइटी जैसी चीजें तब कॉमन नहीं थी लेकिन आज तो सुसाइड जैसी बड़ी प्रॉब्लम्स भी कॉमन हो चुकी है साल 2007 से 2021 के टाइम स्पैन में 10 से 24 साल के लोगों में सुसाइड रेट 62% बढ़ा है
इनफैक्ट दुनिया में यंग लोगों की मौत का तीसरा सबसे बड़ा रीजन सुसाइड ही है जेंन जी में मेंटल टफनेस और रेसिलियंस की बहुत ज्यादा कमी है जिस वजह से टफ टाइम्स को फेस करते वक्त वो लोग स्ट्रेस को अच्छे से मैनेज नहीं कर पाते और इमोशंस में आकर गलत डिसीजंस ले लेते हैं
देखो एक कहावत है कि (टू मच ऑफ गुड इज आल्सो बैड) यानी किसी भी चीज का ओवर यूज भी बुरा होता है और टेक्नोलॉजी पर भी यह बात लागू होती है देखो टेक्नोलॉजी हम ह्यूमंस के लिए एक बहुत यूजफुल चीज है टेक्नोलॉजी से आज किसी भी चीज के बारे में इंफॉर्मेशन और एजुकेशन हासिल करना बहुत ही आसान हो गया है
लेकिन आज ज्यादातर यंगस्टर्स टेक्नोलॉजी का यूज एजुकेशन के लिए नहीं बल्कि अपनी चीप प्लेजर एक्टिविटीज के लिए करते हैं और वो एक तरह से टेक्नोलॉजी पर बहुत ज्यादा ओवर डिपेंडेंट हो चुके हैं आज आलम यह है कि लोगों को खाना बनाने तक की जहमत उठानी नहीं पड़ती है सिर्फ जोमेटो या स्विगी ओपन करो ऑर्डर कर दो और 20 मिनट में खाना आपके घर पे कुछ भी खरीदना है तो बाहर जाने की जरूरत ही नहीं है बस flipkart’s में से सिलेक्ट करो और घर बैठे-बैठे आपको हर चीज मिल जाएगी
आज हर चीज आसान हो गई है लेकिन जिंदगी जब बहुत ज्यादा आसान होती है ना तो फिर वो बोरिंग भी हो जाती है जब आपके लाइफ में कोई चैलेंज नहीं होती है और आपका कोई गोल या फिर मीनिंगफुल पर्पस नहीं होता है तो फिर चाहे जिंदगी कितनी भी आसान क्यों ना हो आपको जिंदगी में सुकून मिलेगा ही नहीं और यही जेन G के साथ भी हो रहा है।
रिसेंट रिसर्चस के मुताबिक हर पांच में से दो Zen-Z रेगुलर साइकोथेरेपी लेते हैं और 53% जेंन जी ने कभी ना कभी प्रोफेशनल मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट से ट्रीटमेंट लिया है एक रिसेंट सर्वे के अकॉर्डिंग जेंज अपने फोन पर हर दिन ऑन एवरेज 7 घंटे टाइम स्पेंड करते हैं यानी पूरे वीक में 49 आवर्स इवन जो बच्चे अभी 8 से 12 के एज ग्रुप में आते हैं वो भी दिन में चार से 6 घंटे मोबाइल या फिर किसी दूसरे डिवाइसेज का यूज करते हैं
तो अगर आप सप्ताह में 49 आवर्स एक जगह बैठे-बैठे मोबाइल या फिर टीवी देखते रहते हो तो फिर मेंटल हेल्थ इश्यूज और लोनलीनेस फील करना तो नॉर्मल ही है ना देखो टेक्नोलॉजी का ओवर यूज आज जेंन जी को आलसी बना रही है और यही उनकी मेंटल वीकनेस का एक बड़ा रीजन है
क्योंकि जब आपको एक जगह बैठे-बैठे बस स्क्रॉल करने से ही भर-भर के डोपामिन मिल रहा है तो फिर आप रियल लाइफ अचीवमेंट्स के लिए एफर्ट क्यों डालोगे देखो ज्यादातर जेंन जी इस ह्यूमन साइकोलॉजी को समझते ही नहीं है लेकिन ये कंपनीज इस बात को अच्छे से जानती है कि ह्यूमन ब्रेन किस तरह से काम करता है वो जानते हैं कि जितना ज्यादा डोपामिन आपको किसी चीज में मिलेगा आप उसके उतने ही ज्यादा आदी बनते जाओगे
और इसीलिए वो कंपनीज इस बात का फायदा उठाती है खास करके सोशल मीडिया कंपनीज जैसे कि फेसबुक इंस्टाग्राम लेकिन जब आप इसे यूज करते हो ना तो आपको भर-भर के एडल्ट कंटेंट परोसा जाता है ताकि आपके दिमाग को डोपामिन से ओवरलोड किया जाए और आपको एडिक्ट बनाया जाए
अब जब आप इनके ऐप के एडिक्ट हो जाओगे तो इनके लिए आपको ज्यादा से ज्यादा ऐड दिखाकर पैसे कमाना आसान हो जाएगा इसके अलावा सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स भी जेंन जी के माइंड पर काफी नेगेटिव इफेक्ट डाल रही है क्योंकि ज्यादातर इन्फ्लुएंसर अपनी जिंदगी की सिर्फ परफेक्ट साइड को ही सोशल मीडिया पर शो करते हैं।
जिसमें वो बड़ी-बड़ी गाड़ियां बंगलो हाई स्टेटस लग्जरियस लाइफस्टाइल शो करती है और जब इस लाइफ से आजकल के यंग बच्चे अपनी लाइफ को कंपेयर करते हैं तो उन्हें अपनी लाइफ पॉइंट लेस लगती है उन्हें लगता है कि उनके लाइफ में कुछ भी नहीं है और इसी कंपैरिजन की वजह से डिप्रेशन और एंजाइटी जैसी प्रॉब्लम्स जेंन जी में बहुत ज्यादा बढ़ रही है
देखो टेक्नोलॉजी का सबसे बड़ा नेगेटिव साइड यही है कि इससे लोगों के फिजिकल हेल्थ पर बुरा असर पड़ रहा है देखो पहले के टाइम में ना जब फोन या टीवी नहीं हुआ करता था था तो लोग शाम को अपने घर से बाहर निकलकर कोई फिजिकल एक्टिविटी करते थे कोई स्पोर्ट्स खेलते थे या अपने यार दोस्तों से बातचीत करते थे
लेकिन जब से इंटरनेट और टेक्नोलॉजी का युग आया है स्पोर्ट्स की जगह वीडियो गेम्स ने ले ली है और असल बातचीत की जगह अब चैटिंग ने ले ली है अब डोपामिन तो आपको चैटिंग और वीडियो गेम से भी मिल जाता है लेकिन इनका आपकी मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है देखो स्टडीज के मुताबिक बहुत ज्यादा गेमिंग करने से डिप्रेशन और एंजाइटी जैसी मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स और ओबेसिटी और स्ट्रेन जैसे फिजिकल प्रॉब्लम्स हो सकती है
इसीलिए अगर आपको खेलना ही है तो अपने दोस्तों के साथ कोई असली स्पोर्ट्स लाइक क्रिकेट फुटबॉल बैडमिंटन वगैरह खेलो इससे आपकी एक्सरसाइज भी होगी आपकी मेंटल हेल्थ भी अच्छी रहेगी और डे टू डे लाइफ से आपको एक ब्रेक भी मिलेगा साथ में आपकी दोस्ती भी और मजबूत होगी और सोशल कनेक्शंस भी स्ट्रांग होंगे।
देखो ज्यादातर जेंन जी में पेशेंस नही हैं उन्हें हर चीज जल्दी चाहिए और जब व 20 से 21 साल के इन्फ्लुएंसरस को लाखों रुपए कमाते हुए देखते हैं और उनकी लग्जरियस लाइफस्टाइल को देखते हैं तो वो भी सोचते हैं कि मैं भी किसी तरह से जल्दी-जल्दी अमीर बन जाऊं और इसीलिए फिर वो गेट रिच क्विक वाली स्कीम्स और कोर्सेस का शिकार हो जाते हैं
आपने देखा भी होगा कि आजकल ये ऑनलाइन कोर्सेस बेचने वाले लोग बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं फनल कोर्सेस ड्रॉपशिपिंग कोर्सेस एआई टूल कोर्सेस पता नहीं कितने कोर्सेस आ गए हैं अब देखो इनमें से कुछ कोर्सेस अच्छे होते हैं पर ज्यादातर कोर्सेस बस लोगों को लूटने के लिए ही होते हैं
खैर वो पूरा एक अलग ही टॉपिक है और उस पर कभी और हम बात करेंगे बट मेरा मेन पॉइंट यह है कि जेंन जी को हर चीज बहुत जल्दी चाहिए टेक्नोलॉजी ने हर चीज को इतना इजी टू एक्सेस बना दिया है कि आजकल लगभग हर चीज आपकी फिंगर टिप पर अवेलेबल है
ऐसे में बच्चों का माइंडसेट इस तरह का हो जाता है कि वो किसी भी चीज के लिए लंबे टाइम तक हार्ड वर्क या फिर पेशेंस नहीं कर पाते देखो 34% जेंस खुद को किसी रिलीजन से जोड़कर नहीं बताते हैं और 18% खुद को एथियस्ट या अग्नोस्टिक बताते हैं
यानी जो भगवान को नहीं मानते अब देखो होता क्या है कि रिलीजन हमारी लाइफ को एक मीनिंग देता है और हमारे कैरेक्टर को सही शेप देने में रिलीजन का एक बहुत बड़ा हाथ होता है हर रिलीजन में कुछ मोरल वैल्यूज और ड्यूटीज होते हैं जिन्हें हमें पूरा करना होता है और जब हम इन ड्यूटीज को फुलफिल करते हैं तो हमारी सेल्फ इमेज बेहतर होती है
लेकिन ज्यादातर Zen-Z रिलीजन को एक माइथोलॉजी चीज मानते हैं उन्हें लगता है कि रिलीजन हमारी फ्रीडम को कम करता है फॉरेन कंट्रीज में ये एथिजिफाइड काफी ज्यादा पॉपुलर हुआ है पर जैसे-जैसे इंडिया में वेस्टर्नाइजेशन बढ़ रहा है वैसे-वैसे यहां पर भी लोग लेस रिलीजियस होते जा रहे हैं।
देखो इंडिया में जो लोग 25 साल की एज से कम के हैं उनमें से 40% लोगों के पास जॉब ही नहीं है लेकिन जब बात आती है 35 साल या उससे ज्यादा एज के लोगों की तो अनइंप्लॉयमेंट का रेट सिर्फ 5 पर है यानी 35% तक कम अब इससे क्या समझ में आता है कि जो यंगस्टर्स हैं वो जॉब ही नहीं कर रहे हैं
और मुझे लगता है कि इसके कई सारे रीजंस हैं जिसमें से रीजन नंबर वन है रॉन्ग माइंडसेट देखो सोशल मीडिया पर आपको कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो कहेंगे कि 9 to 5 जॉब तो बेकार है एक बोझ है जो लोग 9 to 5 जॉब कर रहे हैं वो तो मिडिल क्लास ट्रैप में फंसे हैं उसमें कोई फ्रीडम ही नहीं है और ब्ला ब्ला ब्ला पर मेरा मानना यह है कि अगर आप 25 से कम की एज के हो तो आपको कोई ना कोई जॉब जरूर करनी चाहिए
भले ही उसमें आपको ₹10000 ही महीना क्यों ना मिले लेकिन करो देखो बच्चे अक्सर सोचते हैं कि नहीं मैं यह 10000 की छोटी-मोटी नौकरी नहीं करूंगा पर दोस्त कुछ ना करने से और फालतू बैठे रहने से अच्छा है कि कोई छोटी-मोटी जॉब ही करो एटलीस्ट आपको काम करने का एक्सपीरियंस तो मिलेगा जो एक्सपीरियंस बहुत ज्यादा वैल्युएबल होता है
पर मोस्ट ऑफ द Zen-Z इस बात को नहीं समझते हैं क्योंकि सोशल मीडिया पर कुछ कोर्सेस बेचने वाले लोगों ने तो उनका माइंड में ये भर दिया है कि 9 to 5 की जॉब तो बिल्कुल बेकार है और वो सोचते हैं कि अभी तो इंटरप्रेन्योर शिप और स्टार्टअप्स का ट्रेंड चल रहा है इसीलिए हमें भी वही करना चाहिए जो कि अच्छी चीज भी है
पर ये भी याद रखना चाहिए कि स्टार्टअप्स को भी 9 टू 5 काम करने वाले एंप्लॉयज की नीड पड़ती है इसलिए किसी भी काम को छोटा मत समझो इंडिया में जॉब्स की कमी नहीं है पर यंगस्टर्स कम सैलरी में काम करना ही नहीं चाहते वो किसी बड़ी जॉब के इंतजार में रहते हैं और टाइम हाथ से फिसलता जाता है और दोस्तों इन्हीं सब रीजंस की वजह से आज जेंन जी लाइफ के हर एस्पेक्ट में फेल हो रहे हैं
बट हाउ कैन जेंज फिक्स दीज प्रॉब्लम्स: देखिए जेंन जी ना आज तक की मोस्ट टेक सेवी जनरेशन है जेंज को जितना इंटरनेट और टेक्नोलॉजी का नॉलेज है उतना किसी पास्ट जनरेशंस को है ही नहीं ऐसे में अगर इस टेक्नोलॉजी का यूज जेंन जी अपनी नॉलेज और स्किल्स को बढ़ाने के लिए करें तो जेंज के लिए बहुत यूजफुल साबित हो सकता है
इसके अलावा ओल्ड जेनरेशंस की भी ये रिस्पांसिबिलिटी है कि वो जेंज को हर चीज के लिए ब्लेम करने के बजाय उनको बेहतर बनने में मदद करें दोस्तों मुझे उम्मीद है कि आपको इस आर्टिकल से काफी कुछ नया सीखने को मिला होगा और आपको कुछ अच्छा एडवाइस जरूर मिला होगा बाकी आपका इस बात पर क्या ओपिनियन है नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताना