भारत रत्न रतन टाटा जी की इतनी इज्जत क्यों ? जानिए उनके बारे में 2024

भारत रत्न रतन टाटा जी की इतनी इज्जत क्यों ? जानिए उनके बारे में 2024

भारत रत्न रतन टाटा जी की इतनी इज्जत क्यों ? जानिए उनके बारे में 2024
भारत रत्न रतन टाटा जी की इतनी इज्जत क्यों ? जानिए उनके बारे में 2024

 

दोस्तों कहते हैं कि हमारे देश में सिर्फ दो ही ऐसी कंपनियां हैं जो पैदा होने से लेकर मरने तक हमारे साथ रहेंगी एक है बाटा और दूसरा टाटा.भारत रत्न रतन टाटा जी की इतनी इज्जत क्यों ? जानिए उनके बारे में 2024

वही टाटा जिसकी गाड़ियों में हम ट्रेवल करते हैं जिसके कपड़े पहनकर हम खुद को ब्रांडेड फील कराते हैं जिसके नमक के बगैर खाना हमारे गले से नीचे नहीं उतरता और जिसकी चाय से हमारे दिन की शुरुआत होती है।

और इस टाटा कंपनी को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाने में अगर किसी का सबसे बड़ा कंट्रीब्यूशन है तो वह है रतन टाटा जी का जो आज किसी पहचान के महत आज नहीं है एक ऐसे इंसान जिन्होंने हमेशा खुद से पहले अपने देश और यहां के लोगों के बारे में सोचा

जिनके लिए पैसों से ज्यादा इंपॉर्टेंट वैल्यूज और कमिटमेंट रहे हैं और जिनकी पूरी जिंदगी ड्रीम्स चैलेंजस और सक्सेस से भरी रही है वो सिर्फ एक सक्सेसफुल बिजनेसमैन ही नहीं बल्कि एक अद्भुत लीडर सबसे बड़े दानवीर और लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण भी हैं अब 2611 इंसीडेंट का वो दिन तो आपको याद ही होगा जब मुंबई के ताज पैलेस होटल में आतंकवादियों ने कई सारे निर्दोष लोगों को मार दिया था।

उस समय रतन टाटा जी ताज होटल्स ग्रुप की कंपनी इंडियन होटल्स के चेयरमैन हुआ करते थे इस दर्दनाक घटना की खबर लगते ही रतन टाटा तुरंत होटल पहुंच जाते हैं और जान पर खतरा होने के बावजूद खुद ही पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन को लीड करते हैं इनफैक्ट इस आतंकी घटना में घायल होने वाले सभी एंप्लॉयज को रतन टाटा जी ने पूरी तरह से ठीक होने तक फुल सैलरी दी थी साथ ही जो एंप्लॉयज इस हमले में मारे गए थे उनके बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्चा उठाने की जिम्मेदारी भी रतन टाटा जी ने खुद अपने कंधों पर ले ली थी।

साल 2017 में उन्होंने कैंसर पेशेंट्स के लिए 1000 हजार करोड़ का दान किया था और कोविड के टाइम भी जब पूरा देश फाइनेंशियल क्राइसिस से गुजर रहा था तब भी रतन टाटा जी ने लोगों की मदद करने के लिए पीएम केयर फंड में 1500 करोड़ डोनेट किए थे रतन टाटा जी का जीवन ऐसे ही अनेक परोपकारी कामों से भरा हुआ है जिसकी वजह से उन्हें साल 2000 में पद्मभूषण और साल 2009 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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आज भले ही रतन टाटा जी 86 साल के हो चुके हैं लेकिन उम्र के इस पड़ाव में भी भी वे काफी ज्यादा एक्टिव नजर आते हैं और शायद यही वजह है कि आज भी वह भारतीय युवाओं के लिए रोल मॉडल बने हुए हैं तो चलिए दोस्तों आज हम बात करते हैं रतन टाटा जी की जिंदगी के उन किस्सों और लाइफ लेसंस के बारे में जिसने ना सिर्फ उन्हें सक्सेसफुल बनाया बल्कि अगर आप भी इन लाइफ लेसंस को फॉलो करते हैं तो फिर सफलता आपके भी कदम चूमेगी।

लेसन नंबर वन:  एक्सेप्ट द चैलेंजस दोस्तो कहते है जीवन  में उतार चढ़ाव हमें चलते रहने के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि ईसीजी में एक सीधी लाइन का मतलब होता है कि हम जिंदा ही नहीं है साल 1991 का वह समय था जब रतन टाटा जी को टाटा संस का चेयरमैन बनाया गया था।

और इसके कुछ साल के बाद 1998 में टाटा मोटर्स के द्वारा ही देश की पहली पैसेंजर कार टाटा इंडिका को लॉन्च किया गया था यह कार रतन टाटा जी का ड्रीम प्रोजेक्ट कही जाती थी जिस पर उन्होंने जी तोड़ मेहनत की थी पर अफसोस यह कार मार्केट में कुछ खास कमाल नहीं कर पाई और यह बुरी तरह से फेल साबित हुई जिसकी वजह से टाटा मोट्स को काफी लॉस उठाना पड़ा था।

अब कंपनी को लॉस में जाता हुआ देख टाटा के फाइनेंशियल एडवाइजर्स और कुछ शेयर होल्डर्स रतन टाटा जी को अपनी कार प्रोडक्शन यूनिट बेचने की एडवाइस देते हैं अब रतन टाटा जी को मजबूरन यह फैसला मानना पड़ता है और वह इस डील को लेकर उस टाइम की सबसे बड़ी कार कंपनी फोर्ड के पास पहुंचते हैं अब दोस्तों फोर्ड ने उनके डील में इंटरेस्ट तो दिखाया था पर उस टाइम के फोर्ड के सीईओ बिल फोर्ड ने जाने-अनजाने में रतन टाटा की इंसल्ट भी कर दी थी।

बिल फोर्ड ने रतन टाटा जी से कहा कि जब आपको पैसेंजर कार के बिजनेस का नॉलेज ही नहीं है तो आपको इसे शुरू करना ही नहीं चाहिए था चलिए कोई बात नहीं हम आपका यह बिजनेस खरीदकर आप पर एहसान कर रहे हैं अब रतन टाटा जी को बिल फोर्ड की यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई और वह बिल फोर्ड को बिना कोई सवाल का जवाब दिए डील कैंसिल करके इंडिया वापस लौट गए।

अब दोस्तों अगर कोई और होता तो शायद बिल फोर्ड से बहस में उलझ कर अपने आप को सही प्रूफ करने की ट्राई करता पर रतन टाटा जी ने बिल फोर्ड द्वारा की गई इंसल्ट को मोटिवेशन के रूप में यूज किया और टाटा इंडिका की कमियों को दूर करने में लग गए कुछ समय के बाद ही उन्होंने मार्केट में इंडिका के न्यू वर्जन को लांच कि किया जिसका नाम था इंडिका v2 और शायद मुझे यहां बताने की जरूरत भी नहीं है कि टाटा इंडीका वर्जन 2 कितनी बड़ी हिट साबित हुई थी।

अपनी पहली सक्सेस के बाद रतन टाटा जी लगातार टाटा मोट्स को ग्रो करते रहे और अगले कुछ ही सालों में इसे दुनिया की टॉप कंपनीज के बीच लाकर खड़ा कर दिया एक तरफ जहां टाटा सफलता के झंडे गड़ते हुए आगे बढ़ रही थी वहीं दूसरी तरफ साल 2008 आते-आते फोर्ड कंपनी की हालत खराब हो गई और कंपनी दिवालिया होने के कगार पर आ खड़ी हुई।

ऐसे में फोर्ड ने अपने दो कार ब्रांड्स जगुआर और लैंड रोवर को बेचने का डिसीजन लिया और दोस्तों जैसे ही रतन टाटा जी को इस बात की खबर लगी उन्होंने तुरंत ही फोर्ड से इन दोनों कार कंपनीज को खरीदने का फैसला कर लिया रतन टाटा जी का यह फैसला काफी सरप्राइजिंग था क्योंकि उस टाइम पूरी दुनिया मंदी की चपेट में थी और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री तो पूरी तरह से डूबने की कगार पर खड़ी थी ऐसे में सबको लगने लगा कि बिल फोर्ड से बदला लेने के चक्कर में रतन टाटा जी ने एक गलत कदम उठा लिया है।

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लेकिन रतन टाटा जी ने तो यह फैसला एक लॉन्ग टर्म प्लान को सोच कर लिया था एक्चुअली उस टाइम रतन टाटा जी लग्जरी कार्स के बिजनेस में भी एंट्री करने की सोच रहे थे और इस सिलसिले में जगुआर और लैंड रोवर जैसे आइकॉनिक लग्जरी ब्रांड्स को खरीदना उनके लिए एक तीर दो निशाने जैसा था और इसीलिए जून 2008 में रतन टाटा जी ने 2.3 बिलियन डॉलर फोर्ड से जगुआर और लैंड रोवर को खरीद लिया।

इस बार उसमें थोड़े से चेंजेज थे इस बार बिल फोर्ड के शब्द थे कि आप हमारी यह कंपनी खरीदकर हम पर एहसान कर रहे हैं अब दोस्तों यहां रतन टाटा जी ने अपने इमोशंस को अपना मोटिवेशन बनाकर अपने अपमान का बदला ले लिया था हर इंसान को रतन टाटा जी से सीख लेनी चाहिए हमें भी अपने इमोशंस गुस्से को मोटिवेशन की तरह यूज करना चाहिए ताकि हम भी सक्सेस को अचीव कर सकें रतन टाटा जी ने अपनी लाइफ में हमेशा से ही चैलेंज को एक्सेप्ट किया है और शांत रहकर मजबूती से उसका सामना किया है क्योंकि किसी महान शख्स ने ही कहा है कि योर सक्सेस इज द बेस्ट रिवेंज।

लेसन नंबर टू: बिलीव इन योरसेल्फ दोस्तों जब रतन टाटा जी ने फोर्ड की दोनों कंपनीज जगुआर और लैंडरोवर को खरीदने का डिसीजन लिया उस समय उनके इस डिसीजन के विरोध में भी कई आवाजें उठी क्योंकि लोगों का ऐसा मानना था कि एक इंडियन कंपनी लग्जरी कार्स के बिजनेस को नहीं चला सकती अब साल 2000 में जब रतन टाटा जी ने टेटली नाम की ब्रिटिश टी कंपनी को खरीदने का डिसीजन लिया था तब भी उन पर कई सारे सवाल उठाए गए थे पर रतन टाटा जी को लोगों से ज्यादा अपने फैसले पर भरोसा था।

और उसी भरोसे के दम पर ही उन्होंने हर विरोधी को गलत साबित करके दिखाया जरा सोचिए अगर रतन टाटा जी उस समय लोगों की बात मान लेते और इन दोनों बिजनेस में अपना हाथ नहीं डालते तो क्या टाटा आज उस मुकाम पर होती जहां हम उसे आज खड़ा देखते हैं।

टाटा के पास लैंड रोवर और जगुआर आने के बाद उनकी सेल्स काफी पॉजिटिव डायरेक्शन में आ गई और ये दोनो कंपनीज टाटा मोटर्स के लिए काफी फायदेमंद भी साबित हुई है।

वही अगर टी कंपनी टेटली की बात करे तो 1990 में टेटली लिफ्टन के बाद से वर्ल्ड का सेकंड लार्जेस्ट टी ब्रांड था जबकि टाटा वर्ल्ड की लार्जेस्ट टी प्रोड्यूसर कंपनी थी टी प्रोड्यूसर का मतलब चाय पत्ती बनाती तो थी लेकिन उसे किसी ब्रांड के अंडर नहीं बेचा जाता था ऐसे में रतन टाटा जी ने नोटिस किया कि पूरे भारत में 50 से ज्यादा टी गार्डन होने के बावजूद भी उनकी अपनी कोई पहचान नहीं है।

और यही वजह थी कि जब टेटली के मालिकों ने अपने ब्रांड को बेचने का फैसला किया तो फिर रतन टाटा जी ने तुरंत इस मौके का फायदा उठाया और 271 मिलियन यूरोज में टेटली को खरी लिया यह किसी भी इंडियन कंपनी के द्वारा किसी भी इंटरनेशनल ब्रांड का सबसे बड़ा एक्विजिशन था जिसके साथ टाटा टी इंटरनेशनल लेवल पर ना सिर्फ सेकंड लार्जेस्ट टी कंपनी बनी बल्कि यह यूनिलीवर और लॉरी जैसे ग्लोबल कंपनीज की भी आंख में आंख मिलाकर उनके साथ कंपटीशन में शामिल हो गई।

दोस्तों रतन टाटा जी का एक बहुत फेमस स्टेटमेंट है कि आई डोंट बिलीव इन टेकिंग राइट डिसीजंस आई टेक डिसीजंस एंड मेक देम राइट यानी कि मैं सही फैसले लेने में विश्वास नहीं रखता मैं फैसले लेता हूं और फिर उन्हें सही बनाता हूं अपने फैसले पर अडिग रहना और उसे सही साबित करने के लिए मेहनत के इंतहा से गुजर जाना ही रतन टाटा जी की सक्सेस का सीक्रेट रहा है।

लेसन नंबर थ्री: ट्रस्ट वैल्यूज एंड कमिटमेंट आर मोर इंपॉर्टेंट देन मनी दोस्तों टाटा ग्रुप की स्थापना करने वाले जमशेद जी टाटा ने जिस तरह लोगों के बीच इस कंपनी के ट्रस्ट को बनाए रखा था रतन टाटा जी ने भी उसे लैगेसी को बखूबी बरकरार रखा है रतन टाटा जी के लिए कंपनी की वैल्यूज और उसका कमिटमेंट हमेशा ही पैसों से ज्यादा इंपॉर्टेंट रहा है और यही चीज हमें साल 2016 में भी देखने को मिली।

जब रतन टाटा जी ने सायरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन के पद से हटा दिया था हैरानी की बात तो यह थी कि यह वही सायरस मिस्त्री थे जिन्हें रतन टाटा जी ने खुद चेयरमैन बनाया था साल 2012 में जब रतन टाटा ने टाटा संस के चेयरमैन की पोस्ट से रिटायरमेंट ली तब उन्होंने सायरस मिस्त्री को बोर्ड का चेयरमैन बना दिया था लेकिन चेयरमैन बनने के बाद सायरस टाटा के वैल्यूज और कमिटमेंट से ज्यादा प्रॉफिट पर फोकस करने लगे।

भारत रत्न रतन टाटा जी की इतनी इज्जत क्यों ? जानिए उनके बारे में 2024

अब शुरुआत में तो रतन टाटा जी ने सायरस की एक एक दो गलतियों को माफ किया लेकिन जब यह गलती सायरस की लाइफ का पार्ट बन गई तब रतन टाटा जी ने उनको कंपनी से बाहर का रास्ता दिखा दिया अगर सायरस की सबसे बड़ी गलती की बात करें तो साल 2009 में एक जैपनीज कंपनी एनटीटी डोकोमो ने टाटा टेली सर्विसेस के 26.5% शेयर 13500 करोड़ में खरीदे थे उस समय टाटा ग्रुप ने एंटिटी डोकोमो से यह वादा किया था कि वह जब चाहे तब इन शेयर्स को बेच सकते हैं और अगर कोई बायर नहीं मिला तो फिर टाटा खुद उनके शेयर को खरीद लेगा और बदले में उन्हें उनके शेयर का मिनिमम 50% वैल्यू लौटा देगा।

अब इस डील के कुछ सालों के बाद सायरस मिस्त्री को रतन टाटा टाटा संस का चेयरमैन बना देते हैं हालांकि उस समय टेलीकॉम सेक्टर मंदी के दौर में था और टाटा डोकोमो भी लॉस में चल रहा था समय के साथ लगातार बढ़ता हुआ लॉस को देखकर साल 2014 में एनटीटी डोकोमो ने यहां से एग्जिट करने का मन बना लिया था और फिर एग्रीमेंट के अकॉर्डिंग उसने टाटा से उनके शेयर्स को वापस खरीदने की रिक्वेस्ट की अब डील के अनुसार टाटा ग्रुप को एंटिटी डोकोमो के शेयर्स वापस वापस लेने थे पर इससे टाटा कंपनी को बहुत बड़ा लॉस हो रहा था।

जिसे देखते हुए सारस मिस्त्री पैसे वापस देने से इंकार कर देते हैं अब डोकोमो को इस बात से काफी झटका लगता है क्योंकि उन्होंने तो टाटा पर भरोसा करके उनके साथ इस डील को साइन किया था ऐसे में डोकोमो ने इस बात से नाराज होकर टाटा के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट में धोखाधड़ी का लीगल केस फाइल कर दिया और दोस्तों जब रतन टाटा जी तक यह बात पहुंची तब उन्हें बहुत बुरा लगा क्योंकि उन्होंने जिस टाटा ग्रुप को ट्रस्ट और रेपुटेशन पर खड़ा किया था सारस मिस्त्री की इस एक फैसले से ही उसकी छवी पर दाग लग गया था।

टाटा पर लगे इस दाग को हटाने के लिए रतन टाटा जी ने सारस मिस्त्री को साल 2016 में टाटा ग्रुप के चेयरमैन की पोजीशन से हटवा दिया और उन्हीं के ही कहने पर टाटा ग्रुप के द्वारा साल 2017 में डोकोमो को 1.27 बिलियन डॉलर्स का पेमेंट भी किया गया दोस्तों रतन टाटा जी का मानना है कि एक बिजनेस हमेशा ही ट्रस्ट के ऊपर चलता रहा है और अगर ट्रस्ट ही नहीं रहेगा तो वह बिजनेस लंबे समय तक नहीं चल पाएगा इसीलिए कभी भी टेंपररी प्रॉफिट के लिए अपने अपनी वैल्यूज को नहीं भूलना चाहिए।

लेसन नंबर फोर: बिजनेस फॉर फिलेंथ्रोपी दोस्तों आज टाटा ग्रुप के पास लग्जरी कार बनाने वाली लैंड रोवर, जगुआर, एयर इंडिया, टॉप टेक में जगह बनाने वाली टीसीएस भी सामिल है अगर टाटा ग्रुप के नेटवर्थ या फिर प्रॉफिट की रतन टाटा जी का टाटा ग्रुप हमेशा मुकेश अंबानी जी के रिलायंस ग्रुप से आगे रहा है।

लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है की इतना सब कुछ होने के बाद भी आखिर क्यों रतन टाटा जी का नाम आज तक दुनिया के अमीर बिजनेसमैन की लिस्ट में नहीं आया हालांकि इस सवाल का जवाब एक इंटरव्यू में देते हुए रतन टाटा जी कहते हैं कि मुकेश अंबानी एक बिजनेसमैन हैं और मैं एक इंडस्ट्रियलिस्ट हूं एक बिजनेसमैन होने के नाते अंबानी चाहते हैं कि इंडियन इकॉनमी सुपर पावर बने और एक इंडस्ट्रियलिस्ट होने के नाते मैं चाहता हूं कि भारत में कोई भी गरीब ना रहे।

और मेरे देश में भुखमरी से किसी की मौत ना हो दोस्तों रतन टाटा जी का यह जवाब उनकी मानसिकता और दरिया दिल्ली को दिखाता है आज टाटा ग्रुप का मेजर शेयर होल्डर्स टाटा संस है यानी कि टाटा कंपनी जितने भी पैसे कमाती है वह टाटा संस के पास ही जाता है।

और इस टाटा सैंस का भी 66% हिस्सा टाटा फैमली होल्ड करती है इस तरह से देखा जाए तो रतन टाटा जी के पास बहुत पैसे होने चाहिए लेकिन ऐसा है नही क्योंकि टाटा संस के पास जितना भी पैसा आता है उसका 84% चैरिटी में चला जाता है। इनफैक्ट आज रतन टाटा जी की नेटवर्थ सिर्फ और सिर्फ 3800 करोड़ रुपए है जो की अंबानी और अदानी के कंपेयर में कुछ भी नही है।

रात को सोने से पहले 5 मिनट ये करो, जिंदगी बदल जायेगी । 2024

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