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कैसे मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन का ब्रेन सबसे अलग था?

कैसे मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन का ब्रेन सबसे अलग था?

यह बात तो हम सब जानते हैं कि अल्बर्ट आइंस्टाइन हिस्ट्री का सबसे बड़ा जीनियस था इतना जीनियस के वह अकेला ही हजारों साइंटिस्ट से ज्यादा दिमाग लगा सकता था कैसे मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन का ब्रेन सबसे अलग था? जो चीज हम इंसान समझना तो दूर की बात सोच भी नहीं सकते वह आइंस्टाइन ने सोची भी समझिए भी और उसको पूरी दुनिया के लिए आसान भी बनाया।

कैसे मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन का ब्रेन सबसे अलग था?

अल्बर्ट आइंस्टाइन एक फिसिसिस्ट थे जिन्होंने थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी E=mc² और फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्ट के लॉस बनाकर पूरी दुनिया को हैरान और परेशान छोड़ दिया था और इसकी वजह से ही इनकों नोबेल प्राइस से भी नवाजा गया इनकी एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी सोचने और समझने की सहूलियत देखकर लोग समझते थे कि आइंस्टाइन के पास एक स्पेशल ब्रेन है जो हम आम इंसानों से काफी ज्यादा मुख्तलिफ है।

इस बात का खुद आइंस्टाइन को भी अंदाजा था इसी वजह से वह नहीं चाहते थे कि मरने के बाद इनकी बॉडी के किसी भी हिस्से पर रिसर्च की जाएं बल्कि उन्होंने तो यह इंस्ट्रक्शंस दे रखी थी कि मरने के बाद इनकी बॉडी को जलाकर राख कर दिया जाए लेकिन फिर वही हुआ जिसका एनस्टीन को डर था 8th अप्रैल 1955 को प्रिंसटन हॉस्पिटल में जब आइंस्टाइन का इंतकाल हुआ तो अटॉप्सी के लिए यानी मौत की वजह जानने के लिए जो डॉक्टर आया उसने चुपके से आइंस्टाइन का ब्रेन निकाल लिया।

कैसे मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन का ब्रेन सबसे अलग था?

क्योंकि उसको यह जानने की क्रियाओंसिटी थी कि दुनिया के सबसे बड़े जीनियस के ब्रेन में आखिर ऐसा है क्या नाजरीन आइंस्टाइन का ब्रेन चुराने वाले डॉक्टर थॉमस हार्वी थे जिनको अपने साथ होने वाले अंजाम से ज्यादा इस स्पेशल ब्रेन को स्टडी करने में दिलचस्पी थी कुछ दिनों के बाद जब प्रिंसटन हॉस्पिटल को डॉक्टर हावी की इस हरकत का पता चला तो उनको अपनी जोब से हाथ धोना पड़ा।

लेकिन डॉक्टर हावी आइंस्टाइन के बेटे हंस अल्बर्ट से जैसे-तैसे करके यह परमिशन लेने में कामयाब हो गए कि वह उसके बाप के स्पेशल ब्रेन के अंदर छुपे राजो से पर्दा उठाकर  दुनिया के सामने लाना चाहते हैं इस दिन के बाद से शुरू हुआ इस ब्रेन का एक लंबा तरीन सफर डॉक्टर हावी एक पैथोलाजिस्ट थे जो सिर्फ पोस्टमॉर्टम करना जानते थे।

यह उनका सिर्फ खयाल था कि वह इतने बड़े जीनियस के ब्रेन पर रिसर्च कर पाएंगे अब कंडीशन यह थी कि डॉक्टर हावी प्रिस्टन हॉस्पिटल की जॉब से भी हाथ धो बैठे थे और अपने पैथोलॉजिस्ट का मुद्दा भी आइंस्टाइन का ब्रेन जो पहले ही डॉक्टर हावी प्रीसर्व कर चुके थे वह इसको लेकर पेंसिल्वेनिया के शहर फील्डएलपिया ले गए जहां उन्होंने ब्रेन की कई फोटोस लीए और फिर उसको 240 छोटे-छोटे पीसीज में काटकर हर पीस को अलग-अलग जार में प्रेसर्व करके अपनी बेसमेंट में छुपा दिया।

इसी मसले को लेकर डॉक्टर हावी का अपनी बीवी के साथ कई बार झगड़ा होता रहता था क्योंकि उनकी भी अक्सर यह धमकी देती थी के वह इस ब्रेन को उठाकर कहीं फेंक देगी एक दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों मियां बीवी को डिवोर्स लेकर अलग होना पड़ा और डॉक्टर हार्वी भी ब्रेन लेकर कंसास के शहर विचिटा चले गए जहां वह एक बायोलॉजिकल टेस्टिंग लैब में मेडिकल सुपरवाइजर की नौकरी करने लगे।

कैसे मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन का ब्रेन सबसे अलग था?

और यहां वह अपने फ्री टाइम में आइंस्टाइन के ब्रेन को स्टडी करने की कोशिश करते इसके बाद कई बार वह अलग-अलग जॉब छोड़कर अलग अलग शहरों में यह ब्रेन लेकर घूमते रहे कई साल गुजर चुके थे लेकिन डॉक्टर हार्वी आइंस्टाइन के बयान पर कुछ खास रिसर्च ना कर सके उल्टा उनका मेडिकल लाइसेंस ही कैंसल कर दिया गया और नौबत यहां तक आ गई कि उनको एक प्लास्टिक की फैक्ट्री में जॉब स्क्वार्ट करनी पड़ी।

तभी उन्होंने पहली बार एक अच्छा फैसला किया कि वह उनके ब्रेन के अलग-अलग हिस्सों को दुनिया भर के बेस्ट न्यूरोपैथोलॉजी उसके पास डिटेल रिसर्च के लिए भेजेंगे लिहाजा उन्होंने ऐसा ही किया 1955 में ब्रेन चोरी होने के 30 सालों के बाद यानी 1995 में पहली बार आइंस्टाइन के बयान पर एक स्टडी पब्लिश की गई इसके बाद तक 128 सालों तक इस जीनियस ब्रेन पर दुनिया भर के न्यूरोपैथोलॉजी जिसने कई स्टडीज पब्लिक की जिनमें बताया गया कि आइंस्टाइन का ब्रेन आम इंसान के ब्रेन से काफी डिफरेंट था।

सबसे बड़ा डिफरेंस ब्रेन के कॉरपस कैवरनोसम नामी हिस्से में पाया गया अब यहां यह जानना जरूरी है कि इंसानी ब्रेन दो अलग-अलग हिस्सों में डिवाइड होता है इंसान जो भी काम करता है वह ब्रेन के एक हिस्से में पहले प्रोसेस होता है और फिर ब्रेन हमारे जिस्म के उस हिस्से को सिग्नल देता है कि लेफ्ट ब्रेन हमारे जिस्म के राइट हिस्सों को कंट्रोल करता है जबकि राइट ब्रेन हमारे जिस्म के लेफ्ट हिस्से को कंट्रोल करता है।

कैसे मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन का ब्रेन सबसे अलग था?

इसके अलावा 90% इंसानों का लेफ्ट ब्रेन बोलने-समझने मैथमेटिकल कैलकुलेशंस और राइटिंग यानि लिखने के दौरान काम करता है जबकि राइट ब्रेन के पास क्रिएटिविटी शेड्स को पहचान में आर्ट और म्यूजिकल स्किल्स की जिम्मेदारी होती है अब आप भी यह सोच रहे होंगे कि इस सब में कोरपुर कॉलोजम का क्या काम है।

मान लो आप कीबोर्ड पर टाइपिंग कर रहे हैं या फिर मोबाइल फोन पर इस दौरान हमारे दोनों हाथ टाइपिंग करने में बिजी है कुछ अल्फाबेट्स हमारा सीधा हाथ टाइप कर रहा है तो कुछ उल्टा हाथ टाइपिंग के दौरान आपके लेफ्ट हैंड से एक मिस्टेक हुई तो आपने फौरन अपना राइट हैंड इस्तेमाल करके उस मिस्टेक को अरेस्ट किया तो इसका मतलब यह हुआ कि जब हमारे राइट ब्रेन से मिस्टेक हुई तो उसने लेफ्ट ब्रेन को तुरंत सिगनल देखकर वह मिस्टेक ठीक करवाई।

ब्रेन के दोनों हिस्से आपस में जिस चीज के द्वारा कम्युनिकेट करते हैं उसको और कारपस कॉलोसम कहा जाता है और आइंस्टाइन का कॉरपस कैलोजम आम इंसानों के मुकाबले में कुछ ज्यादा ही बड़ा था यानी उनका लेफ्ट और राइट ब्रेन का आपस में बहुत स्ट्रांग कनेक्शन था जिसकी वजह से आइंस्टाइन एक ही वक्त में काफी कंपलेक्स प्रॉब्लम्स और सिचुएशंस को इमेजिन कर सकते थे कॉरपस कैवरनोसम पर बड़े होने के अलावा आइंस्टाइन के ब्रेन का पैटर्न भी आम इंसानों से काफी अलग था।

और रिसर्चर्स का मानना है कि इसकी वजह से ब्रेन में न्यूरॉन्स का फॉलो काफी बेहतर था न्यूरॉन्स के अच्छे फ्लो होने का मतलब है कि इनकी मैथमेटिकल कैलकुलेशंस की पावर काफी ज्यादा स्ट्रॉन्ग थी अल्बर्ट आइंस्टाइन कंपलेक्स मैथमेटिकल प्रॉब्लम्स को बगैर पेन और पेपर के अपने दिमाग की मदद से ही सॉल्व करने की काबिलियत रखते थे न्यूरॉन्स ज्यादा होने की एक और वजह भी रिसर्च पेपर्स में बताई है।

जब इनस्टाइन के ब्रेन का वजन किया गया तो उसका वजन 1223 ग्राम था जबकि आम इंसान कि आप 1400 ग्राम होता है विशेषज्ञों का मानना है कि उनके ब्रेन की लाइनिंग काफी पतली थी जिसकी वजह से इनमें ज्यादा न्यूरॉन्स पाए जाते थे लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी भी वही था कि क्या आईंस्टाइन ऐसे स्पेशल ब्रेन के साथ पैदा हुए थे या इनके पैदा होने के बाद इसमें चेंजेस आई जांच के बाद मालूम पड़ा कि अल्बर्ट आइंस्टाइन जब पैदा हुए थे तो वह पूरे 5 सालों तक बोल नहीं सकते थे।

जबकि दूसरे बच्चे दो या तीन साल की उम्र में बोलना शुरू कर देते हैं जब उन्होंने बोलना शुरू भी किया तब भी वह ज्यादा बोलना पसंद नहीं करते थे बल्कि हमेशा अपनी सोचो में ही गुम रहते थे उनके पास चीजों को मेमोराइज करने की पावर काफी कम थी यहां तक के उनको सिंपल मैथ के टेबल भी याद करने में मुश्किल होती थी वह मैथ्स और नंबर्स को लॉजिकल तरीकों से प्रोसेस करने के मास्टर थे ना कि उनको रटा लगाकर याद करने में बाकी हर सब्जेक्ट में आइंस्टाइन फेल होते थे।

सिर्फ मैथ और साइंस ही वह सब्जेक्ट थे जिसमें आइंस्टाइन के नंबर सबसे ज्यादा आते थे जब अल्बर्ट आइंस्टाइन 12 साल के थे तब एक फैमिली टीचर अपनी ज्योमेट्री की बुक इन के पास भूल गए हैरतअंगेज़ तौर पर सिर्फ एक ही दिन में आइंस्टाइन वह पूरी बुक पढ़ कर अपने जियोमेट्री के कॉन्सेप्ट क्लियर कर बैठें ना सिर्फ इतना बल्कि सिर्फ 14 साल की उम्र में ही वह इंटीग्रल और डिफरेंशियल कैलकुलस के मास्टर बन चुके थे।

मैथ्स और साइंस में इनकी इतनी स्ट्रॉन्ग पकड़ थी की  जब वह क्लासरूम में कोई सवाल पूछने के लिए हाथ खड़ा करते थे तो प्रोफेसर घबराने लगते थे क्योंकि आइंस्टाइन के अक्सर सवाल टीचर्स के भी ऊपर से गुजर जाते थे छोटी सी उम्र में ही वह इस यूनिवर्स के लॉस को एक छोटी सी इक्वेशन में बंद करना चाहते थे और यही उन्होंने अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया था छब्बीस साल की उम्र में आइंस्टाइन ने चार रिसर्च पेपर्स पब्लिश करके पूरी दुनिया को हैरान कर डाला।

और इसी वजह से उनको पीएचडी की डिग्री और ह्यूमैनिटी ज्यादा किरदार अदा करने की सूरत में नोबेल प्राइस से भी नवाजा गया इसका अंदाजा आप सिर्फ इस बात से लगा लें कि आज भी आइंस्टाइन की थीसिस के बिना साइंस बिल्कुल अधूरी है कई डॉक्टर और साइंटिस्ट ने यह नतीजा निकाला कि आइंस्टाइन का ब्रेन उनके पैदा होने के बाद स्पेशल बना था जिसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि जब उनको अपने सवालों का कोई जवाब नहीं मिलता था तो वह खुद अपने दिमाग की मदद से जवाब तलाश किया करते थे।

छोटी उम्र में ही ऐसा करने से इनका ब्रेन उसी हिसाब से डेवलप होता गया आज भी आइंस्टाइन का यह एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी ब्रेन अमेरिका के बीच मटर म्यूजियम में मौजूद है जिसको बड़ी हिफाजत से माइक्रोस्कोपिक फिल्म्स में प्रेसर्व करके रखा गया है।

 

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