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अगर गरूड़ पुराण सच है? तो किसको कितना दंड Explaning Garud Puran

अगर गरूड़ पुराण सच है? तो किसको कितना दंड Explaning Garud Puran

अगर गरूड़ पुराण सच है? तो किसको कितना दंड Explaning Garud Puran साथियों जहां जीवन है वहां मृत्यु भी है लेकिन मृत्यु के बाद क्या, क्या मृत्यु के बाद जीवन होता है या सब कुछ समाप्त हो जाता है

 अगर गरूड़ पुराण सच है? तो किसको कितना दंड Explaning Garud Puran

 

और यदि सब कुछ समाप्त हो जाता है तो हमारे जीवन का मतलब क्या रह गया ऐसे में तो जीवन भर भलाई करते रहने वाला और जीवन भर दूसरों को कष्ट देने वाला ये दोनों मृत्यु पर एक समान हो जाएंगे

और फिर ऐसे में प्रश्न उठेगा कि कोई भलाई करे ही क्यों और अगर मृत्यु के बाद हमारा कुछ होता है तो क्या होता है क्या हम सच में नर्क और स्वर्ग जाते हैं क्या कोई हमें हमारे बुरे कर्मों के लिए दंड देगा या यही जीवन हमें दंड के रूप में मिला है

नमस्ते दोस्तों आप सभी का स्वागत है दोस्तों आज  हम गरुण पुराण पर चर्चा करेंगे क्योंकि गरुण पुराण में स्वयं भगवान विष्णु जी ने मृत्यु और मृत्यु के बाद के जीवन के विषय में बताया है

और साथ में हम गरुण पुराण से जुड़ी हुई बहुत ढेर सारी बातों को कि गरुण पुराण को पढ़ना चाहिए कि नहीं पढ़ना चाहिए घर में रखना चाहिए कि नहीं रखना चाहिए क्या स्त्रियां अंतिम संस्कार कर सकती हैं कि नहीं कर सकती ऐसी बहुत ढेर सारी भ्रांतियां हैं

और बहुत ढेर सारी बातें फैली हुई हैं तो आज के एपिसोड में हम इन सभी बातों का सत्य जानने का प्रयास करेंगे तो दोस्तों बिना किसी विलम्ब  के आज की बातों  को प्रारंभ करते हैं तो साथियों सबसे पहले हम यह समझ लेते हैं कि गरुण पुराण को गरुण पुराण आखिर कहा क्यों जाता है

क्योंकि इसमें तो मृत्यु का वर्णन है यमलोक का वर्णन है तो इस पुराण को गरुण पुराण क्यों कहा गया असल में जो भगवान विष्णु जी के वाहन है पक्षीराज गरुड़ जी उन्होंने भगवान विष्णु से मृत्यु यमलोक यमलोक की यात्रा इन सभी विषयों पर बहुत ढेर सारे प्रश्न किए थे

और उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए भगवान विष्णु जी ने उत्तर दिए थे और उनके सभी उत्तरों का जो संकलन है वो इसी पुराण में इसलिए इसको गरुण पुराण कहा जाता है और जो गरुण पुराण की मूल प्रति थी उसमें आज माना जाता है कि 19000 श्लोक थे

 

लेकिन आज जब हम देखते हैं तो हमारे पास श्लोकों की संख्या केवल 8000 है और अगर स्ट्रक्चर की बात करेंगे इस पुराण की तो ये दो खंडों में बंटा हुआ है एक पूर्व खंड और एक उत्तर खंड और जो गरुड़ पुराण का पूरा ज्ञान है

लगभग 90% ज्ञान वो पूर्व खंड में ही है उत्तर खंड को हम प्रेत खंड भी कहते हैं और वहां पर कुछ रिच के बारे में बताया गया है तो साथियों हमने गरुण पुराण के विषय में प्रारंभिक ज्ञान ले लिया है कि गरुण पुराण को गरुण पुराण क्यों कहते हैं और इस पुराण का स्ट्रक्चर क्या है

अब हम यह जान लेते हैं कि क्या जीवित मनुष्य को गरुण पुराण पढ़ना चाहिए या नहीं पढ़ना चाहिए इस बात में कितनी सत्यता है अब साथियों हमारे सनातन धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके श्राद्ध कर्म के समय पे गरुण पुराण का पाठ किया जाता है

ऐसा माना जाता है कि गरुण पुराण का पाठ करने से जो व्यक्ति है जो मृतक व्यक्ति है उसकी आत्मा जब यमलोक की तरफ यात्रा प्रारंभ करती है तो वो यात्रा सुगम हो जाती है और अब लोगों में यह धारणा बन गई है

कि अगर आप गरुण पुराण का पाठ करेंगे या इस पुराण को अपने घर पर रखेंगे तो यह मृत्यु के विषयों को आकर्षित करता है जिससे किसी सदस्य की मृत्यु भी हो सकती है लेकिन जब आप गरुण पुराण के महात्म को पढ़ेंगे तो वहां पर साफ-साफ लिखा है स्पष्ट लिखा है

कि जो भी गरुण पुराण का पाठ करता है उसे विद्या यश कीर्ति लक्ष्मी आरोग्य आदि सभी कुछ प्राप्त होते हैं और यहां पर ये भी लिखा है कि जो व्यक्ति एकाग्र चित्त होकर गरुण पुराण का पाठ करता है सुनता है या सुनाता है लिखता है या लिखवाता है और साथ में धर्मार्थ है तो उसे चारों पुरुषार्थ की सिद्धि प्राप्त होती है

गरुण पुराण का पाठ करने से विद्यार्थी को विद्या विजयास को विजय गुणों के इच्छुक व्यक्ति को गुण काव्य शक्ति को चाहने वाले को कवित्वम और जीवन का सार तत्व चाहने वाले को सार तत्व मिल जाता है

तो साथियों जब गरुण पुराण में ही लिखा है कि इस पुराण को पढ़कर आपके चारों पुरुषार्थ की सिद्धि हो जाती है धर्म अर्थ काम और मोक्ष तो यहां पर ये प्रश्न ही नहीं उठता है कि आप जीवित रहते हुए इसका पाठ नहीं कर सकते या इस पुराण को घर पर नहीं रख सकते

क्योंकि मृत्यु के बाद वैसे भी आप इसको नहीं पढ़ पाएंगे और गरुण पुराण को तो जीवित रहते हुए ही पढ़ना है क्योंकि जो गरुण पुराण से आपको शिक्षाएं मिलेंगी मृत्यु से संबंधित जो आपको रहस्य जानने को मिलेंगे उसको सीखकर आप अपने जीवन में शुभ कर्म करते हुए एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं

तो साथियों अब जब यह भ्रांति दूर हो गई है तो अब समझते हैं कि गरुण पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद क्या होता  है अब साथियों मृत्यु के बाद प्राणियों का क्या होता है इसके विषय में जानने के लिए आप गरुण पुराण के अध्याय दो और अध्याय 15 को पढ़ सकते हैं

गरुण पुराण के अनुसार आपका दास संस्कार इसीलिए किया जाता है जिससे आपके शरीर से आत्मा तत्व अलग हो जाए और फिर इस आत्मा तत्व को यमदूत यमलोक लेकर जाते हैं अब यहां पर यह मेंशन किया गया है कि जो बुरे कर्म किए होते हैं उनके लिए यह यात्रा बहुत दुखदाई होती है

और जो अच्छे कर्म किए होते हैं उनके लिए यह यात्रा सुगम होती है अब जो बुरे कर्म किए हैं जिनकी यात्रा दुखदाई होने वाली है उनके लिए बहुत ग्राफिक डिस्क्रिप्शन यहां पर दिया गया है लेकिन अगर आप मूलतः देखेंगे तो ये जो ज्ञान है

ये हमारे उपनिषदों से ही आ रहा है अगर आप उपनिषदों में जाए आएंगे तो वहां पर बताया गया है कि मृत्यु के बाद जो आपका शरीर है स्थूल शरीर जो आपको आपके माता-पिता से मिला है वो आपके सूक्ष्म शरीर से अलग हो जाता है फिर सूक्ष्म शरीर के पास दो मार्ग होते हैं

एक उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन अब उत्तरायण में वही सूक्ष्म शरीर जाता है जिसके कर्म संस्कार अच्छे होते हैं और अच्छी योनियों के शरीर मिलने वाले होते हैं और दक्षिणायन की तरफ वही सूक्ष्म शरीर जाते हैं जिनके कर्म संस्कार बुरे होते हैं जिन्हें दुख भोगने हैं

तो उन्हें निचले स्तर की अधम योनियों के शरीर मिलते हैं अब इसी उपनिषद के ज्ञान को आम जनता बहुत सीरियसली ले और सजग रहे इसलिए गरुड़ पुराण में ये बातें बहुत ग्राफिक तरीके से बताई गई हैं

और इस दुखद यात्रा का वर्णन भी मिलता है तो यहां पर बताया गया कि जिन्होंने बुरे कर्म किए हैं उनकी जो आत्मा होती है जब वो यमलोक की तरफ बढ़ती है तो उसे विश्राम करने के लिए छाया भी नहीं मिलती प्यास बुझाने के लिए पानी भी नहीं मिलता

और भूख मिटाने के लिए भोजन भी साथ में वो कभी जौक से भरे कीचड़ में गिरता है या फिर सांपों से भरे कुए में कभी वो पर्वतों से गिरता है तो कभी वो बर्फीली हवाओं के चपेट में आ जाता है उसे अंगार और बिछु से भरे मार्गों पर चलना पड़ता है और फिर इसी यम मार्ग पर एक वैतरणी नदी आती है

जिसे यमलोक की गंगा कहा जाता है तो जो शुभ काम किए होते हैं वो इस नदी को सहज पार कर लेते हैं लेकिन जो बुरे कार्म किए होते हैं उनके लिए यह नदी खोलते हुए पानी की तरह हो जाती है और उसमें कीटाणु और खतरनाक घड़ियाल जैसे जीव भी उत्पन्न हो जाते हैं

अब साथियों जब आप इस डिस्क्रिप्शन को पढ़ते हैं तो आपको ऐसा लगेगा कि आप कोई अब्राहम रिलीजन पढ़ रहे हो क्योंकि वहां पर हेल और जहन्नुम को इसी प्रकार से डिस्क्राइब किया गया है लेकिन गरुण पुराण के इस ग्राफिक डिटेलिंग का उद्देश्य ही यही है कि आप अशुभ कर्मों से बचे

क्योंकि पहले के लोग धार्मिक ग्रंथों से ही जीवन जीना सीखते थे तो शुभ कर्मों से होने वाले लाभ और अशुभ कर्मों से होने वाली इस प्रकार की हानि के विषय में जानकर लोग शुभ कर्म ही करते थे इसीलिए गरुड़ पुराण में ऐसे बहुत से कामों को लिस्ट किया गया है

कि जिनको करने से आपको इस प्रकार की दुखदाई यम लोक तक की यात्रा करनी पड़ेगी जैसे गुरु का अपमान हो गया माता-पिता का अपमान हो गया या फिर किसी विवाहिता या पत्नी का त्याग हो गया

किसी का वध हो गया किसी की जमीन पर अपना अधिकार जबरदस्ती कर लेना इस प्रकार के बहुत ढेर सारे काम हैं जिनके लिए मृत्यु के बाद यह यातनाएं बताई गई थी तो इससे जो समाज में रहने वाला आम आदमी है वो अशुभ कर्मों से बचता था और शुभ कर्म ही करता था

क्योंकि अगर आप लॉजिकली सोचे तो एक बार आपकी जब मृत्यु हो गई आपका स्थूल शरीर जिस शरीर के माध्यम से आपको दुख और सुख का अनुभव हो रहा था वही नष्ट हो गया तो आपकी आत्मा कैसे सुख और दुख को अनुभव कर सकती है

बिना शरीर के क्योंकि हमने भगवत गीता में भी पढ़ा है नैनम छिंदंति शस्त्राणि नैनम दहति पावक न चैन क्ले दे अंत्यास मारुत तो जिस आत्मा को ना कोई शस्त्र काट सकता है आग जला सकती है ना कोई सुखा सकता है ना गीला कर सकता है तो उस आत्मा को दुख कोई नहीं पहुंचा सकता

जब तक उसके पास शरीर ना हो इसलिए आत्मा किसी खोलते पानी में जाकर तड़पेगी ऐसा संभव नहीं है इसलिए गरुण पुराण में बताई गई यह बातें आपको शुभ कर्मों की तरफ ले जाती हैं

और जो उपनिषदों का ज्ञान है कि आपकी मृत्यु के बाद कुछ नई योनि में आपकी आत्मा प्रवेश करेगी उसको भी अपने डिस्क्रिप्शंस में समाहित करते हैं तो साथियों आपकी आत्मा को यातना तो नहीं पहुंचेगी लेकिन हां शरीर वो जरूर मिल जाएगा जिसमें आपके कर्म संस्कार भोगे जाएंगे

तो एक तरह से देखा जाए तो जो शरीर आपको मिला है जो जीवन आपको मिला है वही आपके लिए स्वर्ग है और वही नर्क है अब साथियों चलिए जानते हैं कि आत्मा किस चीज के अनुसार नया शरीर धारण करती है

अब साथियों ना केवल भगवत गीता बल्कि हमारे जो उपनिषद हैं या दर्शन है चाहे सांख्य हो या योग हो उनके अनुसार जब सूक्ष्म शरीर यानी कि जीवात्मा किसी देह से जुड़ती है तो जन्म होता है यही जन्म की परिभाषा है

और मृत्यु की परिभाषा यह है कि जब उन दोनों में अलगाव होता है सूक्ष्म शरीर और देह में यानी स्थूल शरीर में तो मृत्यु है और अगर आप दर्शनों को पढ़ेंगे तो ये जो जुड़ाव है उसके बीच जो ग्लू का काम कर रहा है यानी कि सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर से कैसे जुड़ा हुआ है

कर्म संस्कारों के कारण जुड़ा हुआ है यानी उनके बीच में उनको साथ में बांधे रहते हैं कर्म संस्कार अब जब जीवन चलते रहता है तो स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर के साथ जुड़ा जुड़ा चलते रहता है

लेकिन कर्म संस्कार छिड़ होते जाते हैं क्योंकि ये पुराने हैं और भोगे जा रहे हैं इस जीवन में आप जो जीवन में झेल रहे हैं जो भी चीजें आपके नियंत्रण में नहीं है वो एक तरह से आपके कर्म संस्कार भोगे जा रहे हैं तो जब पुराने कर्म संस्कार क्षीण हो जाते हैं भोग के खत्म कर दिए जाते हैं तो ये देह का काम फिर कुछ नहीं रह जाता है

ये देह अलग हो जाती है और आपकी मृत्यु हो जाती है लेकिन इस देह में रहते हुए भी आपने कुछ नए कर्म संस्कार कर लिए हैं अब उन नए कर्म संस्कारों को भोगने के लिए एक दूसरी देह फिर से चाहिए होती है

और फिर इस देह से जुड़कर सूक्ष्म शरीर आपके नए कर्म संस्कारों को भोगना शुरू कर देता है और यह प्रक्रिया चलती रहती है तो आपके कर्म संस्कारों के अनुसार ही आपको नया शरीर मिलता है अगर आप महर्षि पतंजलि जी के योग दर्शन में जाएंगे तो वहां पर एक योग सूत्र है जिसमें बताया गया है

कि आपकी जीवात्मा को जो नया शरीर मिलता है वो जाति आयु और देशकाल के अनुसार मिलता है मान लीजिए आपने ऐसे कर्म किए हैं जिनका फल आपको एक पोलर बियर के रूप में मिलने वाला है

तो यहां पर जाति क्या हो जाएगी यानी योनि हो जाएगी पोलर बियर की देश काल क्या होगा पोलर बियर नॉर्थ पोल पर ही मिलते हैं तो वो देश काल हो जाएगा और आयु भी यहां पर निर्धारित हो जाती है कि जैसे एक पोलर बियर है वो 25 30 साल 35 साल जीता है तो उसमें 12 वर्ष की आयु में वैसा फल मिलेगा या 18 वर्ष की आयु में वैसा फल मिलेगा

तो जाति आयु और देश काल के अनुसार से आपको आपके कर्मों का फल अलग-अलग योनियों में मिलता है अब यहां पर बहुत से लोग प्रश्न उठाते हैं कि अगर किसी ने किसी का मर्डर कर दिया तो को उसका फल क्यों नहीं तुरंत मिल जाता क्यों नहीं उसकी मृत्यु हो जाती है जब उसने किसी और को मारा है तो आपको इन सभी प्रश्नों का उत्तर हमारे हिंदू दर्शनों में मिल जाएगा

साथियों चलिए अब जानते हैं कि गरुण पुराण में क्या बताया गया है कि आत्मा को किस प्रकार से नया शरीर मिलता है अब साथियों जो मैंने दर्शनों से आपको ज्ञान बताया था कि किस प्रकार से आत्मा शरीर को चुन नती है

आपकी जीवात्मा तो अगर आप गरुण पुराण में जाएंगे प्रेत खंड में और 46 वें अध्याय को पढ़ेंगे तो वहां पर ये डिटेल में आपको बताया गया है इस पर आगे बढ़े इससे पहले मैं बता दूं कि जो प्रेत खंड है इसमें जो प्रेत होता है अक्सर लोग समझ लेते हैं कि ये भूत है

जैसे भूत प्रेत हम बोलते हैं लेकिन अगर आप प्रेत पर रिसर्च करेंगे दर्शनों में जाएंगे तो आपको प्रेत्य भाव मिलेगा और वहां पर प्रेत्य भाव का अर्थ होता है कि मरने के बाद जो पुनर्जन्म होता है यानी जो आपकी इच्छा है शरीर में बंधने की उसे ही प्रेत्य भाव कहा गया है

तो जब मृत्यु के बाद आपका पुनर्जन्म होता है ये प्रेत्य भाव है इसीलिए प्रेत खंड में गरुण पुराण में यह बातें बताई गई हैं अब अगर आप गरुण पुराण में देखेंगे तो ये पैटर्न ऐसा बताया गया है कि जिस प्रकार की चेतना आपकी रहती है

मृत्यु के समय और आप जिस प्रकार से मरते हैं उसी प्रकार की योनि में आपका जन्म होता है उदाहरण के लिए बताया गया कि अगर आप विष पीकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं तो आप सर्व के रूप में जन्म लेते हैं

ऐसे ही अगर आप भगवत गीता में जाएंगे और 15वें अध्याय का आठवां और नौवां श्लोक देखेंगे तो वहां पर श्री कृष्ण जी भी बता रहे हैं कि मृत्यु के समय आपकी जैसी चेतना होती है वैसे ही चेतना आपको ले जाती है

और नए शरीर से मिलवा है अगर आप बिल्ली कुत्तो की तरह जीवित हैं और उनकी तरह की चेतना रखते हैं तो आप बिल्ली कुत्ते बनते हैं तो कहने का तात्पर्य है कि अगर आप अपनी चेतना पशु के सदृश्य रखते हैं तो आप पशु ही बनेंगे

अब साथियों हमने गरुण पुराण को दार्शनिक स्तर पर समझ लिया अब हम कुछ रिचुअल्स जो दिए गए हैं उसको समझ लेते हैं क्योंकि यहां पर बहुत बड़ा प्रश्न उठता है कि क्या स्त्रियां भी अंतिम संस्कार या श्राद्ध क्रिया में पार्टिसिपेट कर सकती हैं या नहीं

तो साथियों गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जब आपकी जीवात्मा अपना पूरा क कर्म भोग कर लेती है और फिर देह त्याग देती है तो उसकी जो देह है उस देह को आपको भूमि पर कुश और तिल बिछाकर उसका आसन बनाकर उस पर लेटा देना चाहिए

क्योंकि ऐसा माना जाता है जो कुश का मूल भाग है उसमें ब्रह्मा जी जो मध्य भाग है उसमें विष्णु जी और जो अग्र भाग है उसमें शिव जी प्रतिष्ठित होते हैं इसलिए देवताओं की तृप्ति के लिए कुश और पितरों की तृप्ति के लिए तिल बिछाना चाहिए

और फिर इसके बाद मृतक का दाह संस्कार होता है वो भी पूर्व की ओर मुख करके या फिर उत्तर दिशा में फिर अग्नि संस्कार के समय अग्निदेव की पूजा करनी चाहिए और मृत्यु के 11वें दिन श्राद्ध करना चाहिए

और इस प्रक्रिया में छह स्थानों पर मृत स्थान द्वार चौराहा विश्राम स्थल चिता और अस्थि चयन इन छह स्थानों पर पिंड दान भी करना चाहिए अब यहां पर प्रश्न उठता है क्या स्त्रियां इस श्राद्ध कर्म को कर सकती हैं या नहीं

साथियों इस प्रश्न का उत्तर हमें प्रेत खंड के ही अध्याय आठ में मिलता है जहां पर बताया गया है कि मृतक का अर्ध दैहिक यानी कि अंतिम संस्कार करने का कार्य पौत्र पुत्र भाई या भाई की संतान या फिर अपनी जाति  का कोई व्यक्ति कर सकता है

और अगर पुरुषों का अभाव है तो समय यह कार्य स्त्रियां भी कर सकती हैं तो ऐसा कहीं नहीं दिया गया है कि स्त्रियां नहीं कर सकती साथ में हमें यह भी समझना चाहिए कि श्राद्ध कर्म का उद्देश्य क्या है श्राद्ध कर्म करने से ऐसा माना गया है

कि जो मृतक हैं श्राद्ध कर्ता को सुख शांति वैभव आदि प्रदान करते हैं तो अगर एक स्त्री भी कर रही है तो ये कोई अशुभ नहीं है इसे अपवित्र नहीं मानना चाहिए तो साथियों हमने गरुण पुराण के बारे में समझा और वहां पर यह भी जाना कि मृत्यु के बाद आत्मा तत्व किस प्रकार से अलग होता है

और फिर यमदूत उसको यमलोक की यात्रा कराते हैं जो एक तरह से देखा जाए तो हमारे उपनिषदों का जो पुनर्जन्म का कांसेप्ट है उसको गरुड़ पुराण में  बहुत ही इमेजिनेटिव ढंग से बताया गया है

और साथियों हमें भले पता हो या ना पता हो कि मृत्यु के बाद क्या होगा हमें भलाई करनी चाहिए इसका रीजन क्या है इसका रीजन यह है कि अगर मान लीजिए गरुण पुराण की बातें सच हुई तब तो आपको भलाई के अनुसार अच्छी चीजें मिलेंगे ही

और अगर नहीं भी सच हुई अगर मृत्यु के बाद सब कुछ समाप्त हो जाता है तब भी आपके भलाई करने से इस दुख भरी दुनिया में किसी का भला होता है और साथ में गरुण पुराण को केवल मृत्यु के विषयों से संबंधित पुराण माना जाता है

लेकिन जब आप पुराण को देखेंगे उसमें 8000 श्लोक हैं केवल मृत्यु पर ही बात नहीं हुई है ये नीतियों से भी संबंधित ज्ञान का संकलन है पुराण हमारे लिए वेदों और उपनिषदों का ज्ञान आसान कर देते हैं

लेकिन हमें बहुत गंभीरता और ओपन माइंड से पुराणों को पढ़ना चाहिए

धन्यवाद।।।।

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