अगर रतन टाटा नही होते तो टाटा ग्रुप नही होता Biography of Ratan Tata Case Study O/24
Mr. रतन टाटा एक नाम जो भारत की आन बान शान और बिजनेस का भगवान है बाकी बिजनेस मैन ने बिजनेस किया ये देख के कि कौन सा सेक्टर अच्छा कौन सा प्रोडक्ट अच्छा किसमें माल बनेगा किसमें पैसा बनेगा रतन टाटा जी ने बिजनेस किया ये सोच के ऐसा क्या काम करूं जिसकी देश को जरूरत है कौन सा प्रोडक्ट कौन सी इंडस्ट्री में जाऊं जिससे देश का भला हो।
बाकी बिजनेसमैन अपना बैंक बैलेंस और नेटवर्थ बढ़ाने की रेस में रहे और रतन टाटा जी रहे भारत का मान सम्मान बढ़ाने की रेस में रतन टाटा जी ग्रुप के चेयरमैन बने 1991 में तब टाटा ग्रुप के पास टोटल 95 कंपनियां थी और हर कंपनी अलग-अलग सेक्टर में काम कर रही थी इनमें कोई एकता नहीं थी सब अपनी-अपनी धुन में चल रहे थे कोई सेंट्रल अथॉरिटी नहीं थी और पूरा फोकस इंडियन मार्केट पे था बाहर कोई ध्यान नहीं दे रहा था ग्रुप का रेवेन्यू मात्र 14000 करोड़ और मार्केट कैपिटल मात्र 30000 करोड़ फिर रतन टाटा जी जब सीन में एंटर हुए और 2012 में रिटायर हुए तब तक वो क्या कर चुके थे ये पढ़िए।
जो टाटा ग्रुप की छोटी-छोटी कमियां थी अपनी मनमानी कर रही थी सबको एक करके सेंट्रलाइज कर दिया जहां फोकस सिर्फ इंडियन मार्केट पे था फॉरेन मार्केट पे फोकस किया और आज टाटा ग्रुप का 60% रेवेन्यू विदेशों से आता है टाटा ग्रुप ब्रिटेन का सबसे बड़ा एंप्लॉयर है यानी वो देश जिसने कभी भारत पे राज किया था वहां पे हम राज कर रहे हैं सबसे ज्यादा नौकरियां हम देते हैं रतन टाटा जी के पीछे ब्रिटेन के बड़े-बड़े ब्रांड चाहे वो टेटली हो चाहे जगुआर हो चाहे लैंडरोवर हो चाहे कोरस हो सब खरीद डाला।
देश की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी टीसीएस उन्हीं की निगरानी में लिस्ट हुई थी जब उन्होंने जॉइन किया सेल थी मात्र 14000 करोड़ जब वो रिटायर हुए तो सेल कर गए थे सवा 5 लाख करोड़ जब उन्होंने जॉइन किया मार्केट कैप 30000 करोड़ था आज की रेट में टाटा ग्रुप देश का सबसे बड़ा ग्रुप है 25 लाख करोड़ मार्केट कैप के साथ पर उन्होंने ये किया कैसे उनकी क्या लीगेसी रही इंडिया और वर्ल्ड में और ये तो रही बिजनेस की बात बिजनेस के अलावा पर्सनल जिंदगी कैसे थी उससे रिलेटेड कुछ किस्से कुछ कहानियां जो चैरिटी करते थे जो हंबल थे उसके किस्से बताएंगे।
Ratan Naval Tata
रतन टाटा जी का जन्म हुआ था 1937 में उनके माता-पिता के बीच में डिवोर्स हो गया तो उनको अपना बचपन दादी के साथ बिताना पड़ा 1955 में मात्र 17 साल की उम्र में वो यूएस चले गए कॉर्नेल यूनिवर्सिटी पढ़ने के लिए 1962 में उनकी ग्रेजुएशन डिग्री पूरी हुई आर्किटेक्ट की रतन टाटा जी डिग्री से एक आर्किटेक्ट थे उस समय उनका मन था कि यार यूएस की लाइफ स्टाइल ठीक है वहीं सेटल हो जाते हैं लेकिन दादी ने उनको बचपन से पाला था दादी की तबीयत खराब हुई दादी ने पुकारा एक बार में चले आए।
आईबीएम से उनको ऑफर मिला और वो आईबीएम में नौकरी करने की सोच रहे थे जेआरडी टाटा की महानता थी उन्होंने कहा नहीं यार तुम तो उस टाटा ग्रुप से कहीं ना कहीं जुड़े हुए हो प्लीज जॉइन कर लो और जब तक इंडिया में रहोगे टाटा ग्रुप में ही काम करोगे 1963 में जब वो 26 साल की उम्र थे विधिवत रूप से टाटा ग्रुप में एंट्री की तो सबसे पहले टा ग्रुप में जब एंटर हुए 6 महीना उन्होंने टाटा मोटर में ट्रेनिंग की उसके बाद चले गए।
टेस्को जो आज की डेट में टाटा स्टील नाम से जानी जाती है 6 महीना वहां ट्रेनिंग की ट्रेनिंग के बाद वहीं टाटा स्टील में एक टेक्निकल ऑफिसर की हैसियत से उन्होंने जॉइन किया काम चालू किया 1969 में 4 साल बाद वो ऑस्ट्रेलिया चले गए ग्रुप का रिप्रेजेंट करने कि टाटा ग्रुप को एक मेंबर चाहिए था तो ऑस्ट्रेलिया गए और टाटा ग्रुप का प्रतिनिधित्व किया 1970 में कुछ समय के लिए उन्होंने टीसीएस में भी काम किया था।
1971 में उनको नाल्को का डायरेक्टर बनाया गया नाल्को को एक तरह की लॉस मेकिंग फर्म थी और टाटा ग्रुप ने उम्मीद छोड़ दी थी कि इसमें कुछ हो सकता है पर रतन टाटा जी ने उसको भी ट्रांसफॉर्म किया और कंपनी को बदल दिया और वहां जे आर डी टाटा को दिखा इस लड़के में कुछ बात है नाल्को की सफलता के बाद 1971 में टाटा सांस जो उनकी प्राइमरी कंपनी है उसमें इनको डायरेक्टर बनाया गया।
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1975 में हावर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट का प्रोग्राम किया 1981 में बने टाटा इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर और वहां पे इन्होंने क्या किया टाटा ग्रुप का जो (थिंक टैंक है) जो प्लान करता है कि अब किस नए सेक्टर में आना अब क्या करना चाहिए और किस हाईटेक बिजनेस में घुसना इन्होंने नीव रखी थी उसकी 1981 में।
1983 में इन्होंने लॉन्च किया टाटा साल्ट जो देश का नमक है वो देश के हमारे लाल ने ही लांच किया था 1986 में एयर इंडिया के चेयरमैन बने कुछ समय के लिए और फाइनली 25 मार्च 1991 को इनको टाटा ग्रुप के अधिकृत रूप से चेयरमैन बन गए रतन टाटा जी टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने थे एक कोइंसिडेंस बताता हूं इसी के 10 दिन बाद 4 अप्रैल 1991 को आनंद महिंद्रा जी महिंद्रा ग्रुप में एंटर हुए थे।
1991 इस पीरियड को समझना इंटरनल एक्सटर्नल दोनों तरफ हाहाकार मचा हुआ था सबसे पहले बात करते हैं एक्सटर्नल हाहाकार की एक्सटर्नल मतलब उस समय देश की इकोनॉमी खुली थी देखो 91 के पहले देश की इकॉनमी बंद थी तो क्या था लाइसेंस राज था कि हर कंपनी को हर प्रोडक्ट बनाने का लाइसेंस मिला हुआ था कि अच्छा यह आदमी यह बनाएगा ये आदमी ये बनाएगा कुछ भी बना ले कैसा भी बना ले किसी भी रेट पर बेचे माल तो बिक ही रहा था।
तो उस समय टेंशन नहीं थी कंपटीशन नहीं था और सब अपना काम राजी कुशी कर रहे थे 1991 में जब अर्थव्यवस्था खुल गई तो विदेशी कॉम्पिटेटिव भी आए और देशी लोगो को पूरा खुल्ला मैदान मिल गया उस समय 91 के पहले जितने भी पुराने ग्रुप थे जो फल फूल रहे थे 91 के बाद सब साफ हो गए आप नाम ही नहीं सुनते आप नाम टाटा ग्रुप, बजाज ग्रुप महिंद्रा ग्रुप, बिरला ग्रुप का इसलिए सुन रहे हो क्योंकि इन चारो के जो लीडर थे विजनरी थे इन्होंने ग्रुप को संभाल लिया।
उस समय 91 के पहले इनके आसपास की जो सब थे चले गए काल के काल में तो इन चार लीडर ने देश को संभाल लिया ये तो था एक्सटर्नल क्योंकि उस समय विदेशी कंपनियों से भी लड़ना था और बाकी सब से भी लड़ना था और मैदान खुल गया था इंटरनल चैलेंज तो और खतरनाक था इंटरनल चैलेंज ये था कि साहब उस समय टाटा ग्रुप की अलग-अलग कंपनियां थी 95 कंपनियां मैंने आपको बताया हर कंपनी में एक ना एक ऐसा बंदा बैठा था जो उस कंपनी को अपने हिसाब से चला रहा था।
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टाटा ग्रुप से कोई लेना देना नहीं था क्योंकि इनके पहले जो बॉस थे वो थे जे आर डी टाटा जे आर डी टाटा का व्यक्तित्व इतना भारी था कि उनकी आवाज में दम था एक बार फोन लगा दिया एक बार बात कह दी तो आदमी इधर-उधर हिल नहीं सकता था लेकिन जब वो चेयरमैन नही रहे तो हर आदमी अपनी-अपनी मनमानी करने लग गया जब रतन टाटा जी भी बने तो एक रूसी मोदी करके थे उनका मानना था
कि शायद वो चेयरमैन बनते तो उन्होंने बहुत ज्यादा विद्रोह कर दिया तो इंटरनली इनको विद्रोह का सामना करना पड़ा इन्होंने इस विद्रोह को पूरा कंट्रोल करते हुए पुराने जो व्यक्ति इस तरह की मन तानाशाही कर रहे थे उनको सबको हटाया।
रिटायरमेंट की एज नहीं थी कोई भी आदमी जब तक जिंदा है तब तक काम कर रहा था रिटायरमेंट की एज डाली नए टैलेंट के लिए जगह बनाई बाकी सब ग्रुप की कंपनीज में अपने हल्के हल्के स्टेक्स बढ़ाए और टाटा सस जो उसकी चेयरमैन कंपनी थी उसका दबदबा बढ़ाया ताकि कोई कंपनी इधर-उधर ना निकले अगर रतन टाटा जी 1991 में जवाइन नहीं करते 2000 तक आते-आते टाटा ग्रुप की 20-30 कंपनियां अलग-अलग डायरेक्शन में चली जाती।बिना टाटा ग्रुप के कंट्रोल के.
उस समय जितनी भी कंपनिया थी सबका फोकस ये था इंडिया में काम करो इंडिया में काम करो इन्होंने कहा इंडिया में तो काम करना है पर पर इंडियन कंपनी बाहर जाके अपना डंका कैसे बजाएगी उस पर इन्होंने प्रयास चालू किया और शुरुआत की सन 2000 से सन 2000 में इन्होंने टेटली जो कि एक ब्रिटिश ब्रांड था उसको खरीद लिया तहलका मच गया पूरे भारत में और विश्व में कि एक इंडियन कंपनी बाहर जाके विदेशी कंपनी को खरीद ली।
वो भी खुद से बड़ी टेटली को टाटा टी छोटी कंपनी थी टेटली बड़ी कंपनी थी तो छोटी कंपनी ने बड़ी कंपनी खरीद लिया और इंडिया ने ब्रिटिश कंपनी को खरीद लिया तो भाई साहब एक तो बाजार में हल्ला मच गया कि ये क्या हो गया और इनको देख के बाकी भी बिजनेस में कॉन्फिडेंस आया कि यस हम भी बाहर जाकर कर सकते हैं।
हम भी बाहर अपना बिजनेस फैला सकते हैं हम भी एक्सपोर्ट कर सकते हैं हम भी ब्रांड खरीद सकते हैं तो ये जो शुरुआत है ना इंडियन कंपनी के डोमिनेंस की फीयरलेस होने की नीडर होने की यह रतन टाटा जी की देन है उसी साल सन 2000 में इनको मिला पद्मभूषण जो कि भारत का तीसरा सबसे बड़ा सम्मान है 2004 में ये लेके आए टीसीएस का आईपीयो टीसीएस में याद है 1970 में इन्होंने काम किया था इनको पता तो था कंपनी क्या है उसका उस समय इन्होंने आईपीओ किया और आज की डेट में टीसीएस देश की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है।
टाटा ग्रुप की जितनी भी कंपनियां है उनमें 90% प्रॉफिट अकेली टीसीएस देती है 2006 में लॉन्च किया डीटीएच सर्विस टाटा स्काय 2008 में भाई साहब इन्होंने फिर एक बार दाव खेला जगुआर और लैंडरोवर को खरीदा और उसी साल उनको भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्म विभूषण मिला 2012 में एज अ चेयरमैन इन्होंने रिटायरमेंट ले लिया और सायरस मिस्त्री को अपना उत्तराधिकारी अपॉइंट्र कर दिया।
2000 में इनको मिला पद्मभूषण जो कि तीसरा सबसे बड़ा सम्मान था 2008 में मिला इनको पद्म विभूषण जो कि दूसरा दूसरा सबसे बड़े सम्मान था लेकिन ये हकदार हैं देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न के तो वैसे अभी खबरें आ रही है कि महाराष्ट्र सरकार ने थोड़ी प्रयास कर दिया है प्रपोजल कर दिया है सरकार पे कंटीन्यूअस दबाव बनाना जरूरी है तो आप जितने भी रतन टाटा जी के फैन प्रशंसक हैं उनकी दिल से इज्जत करते हैं उनसे रिक्वेस्ट है हम सब मिलकर ट्रेंड करते हैं। भारत रत्न फर रतन टाटा
अगर हम बात करें रतन टाटा जी के अदर अचीवमेंट के बारे में मैंने कहा ना भारत देश को अगर किसी चीज की जरूरत होती है सबसे पहले टाटा ग्रुप आता है तो आज की डेट में हमको पता है कि अगर वर्ल्ड लेवल पे टेक्नोलॉजी में आगे जाना है तो हमको चाहिए चिप सेमीकंडक्टर चिप पर उसका प्लांट में एक्सपर्टीज बहुत लगती है पैसा बहुत लगता है रिस्क बहुत लगता है हर कोई रिस्क ले नहीं सकता टाटा ग्रुप आगे आया और आज सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में सबसे बड़ा काम रतन टाटा जी का टाटा ग्रुप ही कर रहा है।
आज की डेट में हर कंपनी कह रही है हम इंडिया के बाहर एक्सपोर्ट कर रहे हैं बाहर एक्सपोर्ट कर रहे हैं ये प्रेरणा ये इंस्पिरेशन उसकी शुरुआत रतन टाटा जी ने की थी 60% रेवेन्यू टाटा ग्रुप का इंडिया के बाहर से लाके।
हम बात करते हैं चैरिटी की जब भी अमीर व्यक्तियों की लिस्ट आती है उसमें बाकी सबका नाम आता है अंबानी आता है अडानी आता है बजाज आता है सब आता है रतन टाटा जी का नाम उस लिस्ट में नहीं आता क्यों क्योंकि उन्होंने कहा कि वो अब टाटा ग्रुप के सबसे बड़े शेयर होल्डर नहीं है टाटा ग्रुप के जो सबसे बड़े शेयर होल्डर है वो है टाटा ट्रस्ट यानी टाटा ग्रुप जितना भी पैसा कमाता है उसका डिविडेंड जाता है टाटा संस में और टाटा संस का जितना भी पैसा आता है उसका सबसे बड़ा शेयर होल्डर है टाटा ट्रस्ट और वो पूरा पैसा समाज सेवा पे खर्च होता है।
तो टेक्निकली देखा जाए तो टा ग्रुप में जो ओनर है वो ट्रस्ट है कोई व्यक्ति नहीं रतन टाटा जी ने कोरोना से फाइट के लिए 500 करोड़ का दान दिया था 2008 में जब ताज पे अटैक हुआ था कोई और प्लेयर होता तो कहता भैया दूर रहो यहां पे आतंकवादी है हम सेफ रहे रतन टाटा जी उस समय सड़क पर खड़े थे जब तक आतंकवादी थे और ऑपरेशन चल रहा था
रतन टाटा जी खुद वहां पे पूरी स्थिति को मॉनिटर कर रहे थे और वहां पे जो भी व्यक्ति जख्मी हुआ जिसको भी ट्रॉमा हुआ चाहे वो होटल का बंदा था या होटल के आसपास वाला या कोई भी एक्स वाई जड सबके लिए आज तक वो सर्विसेस चला रहे हैं।
उसके लिए अलग से ताज पब्लिक सर्विस ट्रस्ट बनाया जो कि होटल और उसके आसपास के जो व्यक्ति है उनकी सेवा के लिए आज भी काम कर रहा है रतन टाटा जी ने एक बार बॉम्बे हाउस में देखा आवारा कुत्ते घूम रहे हैं तो उन्होंने कहा अरे यार ये बिचारे कहां खाते होंगे उन्होंने बम्बे हाउस में अलग से व्यवस्था कराई है कि जहां पे आवारा कुत्तों के लिए जगह बनाई है कि यहां पर आके वो रह सकते हैं और उनके खाने की व्यवस्था वो करते हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि अजी साहब बिजनेस में अगर बड़ा बनना है तो स्मोकिंग करनी पड़ती है शराब पीनी पड़ती है पार्टियों में जाना पड़ता है देश का सबसे सम्मानीय व्यक्ति और देश के सबसे बड़े ग्रुप को बनाने वाला खुद कभी स्मोकिंग नहीं की कभी ड्रिंकिंग नहीं की वो सिंपल टी टोटलर थे इनकी डॉग रिलेटेड एक स्टोरी और भी है इनको जब ब्रिटेन की महारानी ने बुलाया कि तुमको सर रतन टाटा जी की उपाधि देंगे।
उस दिन पर्टिकुलर डे जब सम्मान होने वाला था ये वहां पहुंचे नहीं तो पता पड़ा क्यों नहीं पहुंचे क्यों नहीं पहुंचे तो पता चला इनके एक डॉग की तबीयत खराब थी इन्होंने कहा इसका ध्यान रखना जरूरी है अवार्ड तो आते जाते रहते हैं तो एक सिंपल डॉग की सेवा करने के लिए ब्रिटेन का अवार्ड ठुकरा दे वो है रतन टाटा रतन टाटा जी बिजनेस के भगवान हैं और वह मैं हमेशा कहता हूं।
और उसका एक प्रूफ और है एक जो एम सी ए सरकारी संस्था है मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स जो इस पे प्लान करती है कि ये जो कंपनीज है इनका काम वो देखती है उसको डिजिटलाइज करने का प्रपोजल आया वो प्रपोजल दिया गया टीसीएस को तो टीसीएस ने एक प्रपोजल दिया कि डिन नंबर इशू करेंगे डायरेक्टर आइडेंटिफिकेशन नंबर जो भी व्यक्ति प्राइवेट लिमिटेड में है उस सबके पास डिन है देश का सबसे पहला डिन जो कि 00001 है रतन टाटा जी के नाम पे अब किस्से कहानी तो और भी है क्योंकि रतन टाटा जी का व्यक्तित्व ही इतना बड़ा था।
लेकिन अभी यही विराम देते हैं तो रटन टाटा जी के प्रति आपका जो प्यार सम्मान था जो भी आपको शब्दों में पिरो के कहना चाहते हैं कमेंट बॉक्स आपके लिए खुला है वहां कीजिए।।।
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