इजराइल आखिर कैसे बना इतना ताकतवर देश क्या ईरान उसका मुकाबला कर सकता है ? जानिए 2024
दुनिया के शक्तिशाली देशों की जब हम बात करते हैं तो हर किसी के जेहन में अमेरिका चीन रूस जैसे देशों का नाम आता है यह ऐसे देश हैं जो अपने एक फैसले से ग्लोबल पॉलिटिक्स में हलचल मचा देते हैं।
लेकिन इस लिस्ट में कई ऐसे देश और भी है जो अपना अलग-अलग वैल्यू रखते हैं इसमें से हमारा भारत भी एक है लेकिन इन सबके बीच एक छोटा सा देश और भी है जिसका लोहा पूरी दुनिया मानती है और यह सिर्फ कहने की बात नहीं इस देश के पास इतना कुछ है जिसकी वजह से बड़े से बड़े देश भी इसके सामने घुटने टेकते हैं।
आज हम बात करने जा रहे हैं पश्चिम एशिया के देश इजरायल की हमारे देश की मणिपुर राज्य से भी छोटा इज़राइल आखिर कैसे एक सुपर पावर बन गया इसके पास कोई जादू की छड़ी नहीं आई थी बल्कि इस देश के लोगों को जितना तड़पाया गया उतना शायद ही किसी के साथ हुआ होगा।
प्रथम विश्व युद्ध के पहले इजरायल-फिलीस्तीन अटोमन साम्राज्य का एक हिस्सा था और इसका केंद्र था टर्की इस विश्व युद्ध में अटोमन साम्राज्य को ब्रिटेन और उसके मित्र देशों से हार का सामना करना पड़ा इसके बाद फिलिस्तीन ब्रिटेन के शासन में आया लेकिन फिलिस्तीन की समस्या और बढ़ गई क्योंकि इस इलाके में अरब पहले से रहते थे और यहीं पर यहूदी भी रहना चाहते थे।
Iran Israel conflict ईरान इजराइल संघर्ष
यहूदियों का मानना था कि इस इलाके में हजारों साल से उनका ऐतिहासिक और धार्मिक संबंध रहा है इसलिए ये यहां रहने को भगवान द्वारा दिया गया हक मानते रहे 20वीं सदी की शुरुआत में हजारों यहूदी फिलीस्तीन के इलाके में आने लगे थे यहूदियों के साथ यहूदी होने के कारण यूरोप और रूस में बहुत अत्याचार किया गया द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर ने लाखों यहूदियों को मरवा दिया था।
इसके बाद सारे यहूदी इस इलाके में आ गए यहूदियों के यहा आने के बाद भी उनपर अत्याचार का सिलसिला यहां नहीं रुका अब उन पर अरब के लोगों ने जुल्म करना शुरू कर दिया दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन ने फैसला किया कि फलीस्तीन पर फैसला संयुक्त राष्ट्र संघ करें कि आखिर क्या करना है संयुक्त राष्ट्र संघ ने फिलिस्तीन को दो देशों में बांटने का सुझाव दिया।
एक अरब और दूसरा यहूदियों के लिए लेकिन अब भी लड़ाई खत्म नहीं हुई थी दरअसल अरब ने इस योजना को स्वीकार नहीं किया लेकिन यहूदी नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र के इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए इसराइल की घोषणा कर दी अमेरिका ने उसी समय इजराइल को अलग देश की मान्यता दे दी 1948 में इजराइल देश का गठन हुआ दोस्तों असली लड़ाई की शुरुआत तो अभी बाकी थी इस्राएल की घोषणा के साथ ही लड़ाई शुरू हो गई।
और यह लड़ाई महीनों चला इसके बाद इसराइल और अरब देश युद्ध रोकने पर राजी हो गए आगे चलकर इजरायल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक देश की मान्यता मिलने लगी और ऐसे ही अस्तित्व में आया आज का इजरायल इजरायल भूमध्य सागर के पूर्वी छोर पर स्थित है इसका दक्षिणी छोर लाल सागर का है।
पश्चिम यह इजिप्ट से लगता है और पूर्व में जॉर्डन से और लेबनान इसके उत्तर में है और सीरिया उत्तर पूर्व में नक्शे में अगर आप देखें तो इसके चारों तरफ दुश्मन देश है इनमें से किसी भी देश ने इजरायल को कभी पसंद नहीं किया हालांकि फिलिस्तीन कोई देश नहीं है लेकिन फिलिस्तीन के लोग पश्चिमी तट और गाजा पट्टी को मिलाकर एक अलग देश बनाना चाहते हैं लेकिन सबसे बड़ा पंगा यह है कि इस्राएली और फलीस्तीनी दोनों ही अरुसलम को राजधानी बनाना चाहते हैं।
मध्य पूर्व का तनाव Middle East tensions
कुछ साल पहले अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी की मान्यता दी है लेकिन संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में दुनिया के ज्यादातर देशों ने इसे खारिज कर दिया शुरुआत में ही हम आपको बता चुके हैं कि इजरायल क्षेत्रफल के मामले में भारत के मणिपुर से भी छोटा है इसकी जनसंख्या अभी 92 लाख के आस पास है यह न तो इतना बड़ा है और ना ही उसके पास खनीज का बहुत बड़ा भंडार है मतलब सीधे-सीधे कहें तो इजरायल भारत के सामने कहीं भी नहीं टिकता।
लेकिन इसके बाद भी इजरायल की गिनती दुनिया के उन देशों में हैं जिनके पास टेक्नोलॉजी और सिक्योरिटी पावर बेहतरीन है। 1948 इजरायल बन तो गया लेकिन समस्या यह थी इजरायल के साथ कोई व्यापार नहीं करना चाहता था इजरायल के पास इस तरह की नेचुरल रिसोर्सेज नहीं थे जिससे की वो अपनी इकॉनमी चला सकता था।
तब वहां ना तेल था और ना ही खनीज का कोई नामों निशान लेकिन 1950 में इजरायल का पहला बिजनेस ग्रुप दक्षिणी अमेरिका भेजा गया इजरायल बिजनेस पार्टनर के लिए परेशान था उस ग्रुप ने कई बैठकें कीं लेकिन सब ने उसका मजाक उड़ाया इजरायली दल संतरा केरोसीन स्टोर और नकली दांत बेचने की कोशिश कर रहा था अर्जेंटीना जैसे देशों में संतरा का उत्पादन पहले से ही काफी होता था।
वहा बिजली की भी कमी नहीं थी इसलिए केरोसीन की भी जरूरत नहीं पड़ती थी लेकिन आज के इजराइल को देखकर आप बिलकुल भी अंदाजा नहीं लगा सकते कि 70–75 साल पहले इसकी स्थिति इतनी खराब थी कि जो देश आज हाईटेक सुपर पावर है कभी उसका संतरा भी कोई नहीं खरीदता था जब दुनिया ड्रोन शब्द से सही से परिचित नहीं थी तब यह 1985 तक इज़राइल दुनिया भर में सबसे बड़ा ड्रोन का निर्यातक देश रहा।
दुनियां भर का 60% ड्रोन इजरायल के द्वारा ही सप्लाई किया जाता था अगर आपको हम उदाहरण बताए तो 2010 में नेटो देश अफगानिस्तान में इजरायली ड्रोन ही उड़ाते थे आप समझ सकते हैं कि इजराइल ने कैसा ड्रोन बनाया होगा जिसके बारे में दुनिया कभी कहती थी कि वह देश कभी अपने पैरों पर खड़ा नही हो पाएगा आज दुनिया में सबसे ज्यादा आधुनिक हथियार बेचता है दुनिया की दवाइयों की बहुत से पेटेंट उसके पास है।
इजरायल अपने जीडीपी का साढ़े चार फ़ीसदी खर्च रिसर्च पर करता है और उसने प्रदेश में हर सेक्टर में ऐसा सिस्टम तैयार किया है जिसकी बराबरी बड़ा से बड़ा देश भी नहीं कर पाता यह तो बात हुई टेक्नोलॉजी की लेकिन सवाल तो यह भी उठता है कि कैसे इस छोटे से देश ने दुनिया के सबसे मॉडर्न सेना कैसे तैयार कर ली तो चलिए इसका भी राज हम आपको बताते हैं जरासल इसका राज जवाब छिपा है इस देश के स्ट्रक्चर में इजरायल के बारे में कहा जाता है कि वह अपने देश में नागरिक नहीं सेना तैयार करता है।
इस्राइल में हर नागरिक के लिए सेना में सेवा देना जरूरी है चाहे महिला हो या पुरुष उसे सेना में सेवा देनी ही होती है इजराइल के सारे नेता और प्रधानमंत्री सेना में काम करके ही सत्ता में आए हैं यही कारण है कि इन सब ने इजरायल की सामरिक ताकत पर हमेशा ध्यान दिया है यूरोप और अमेरिका इजराइल को सबसे सुरक्षित देश मानते हैं दोस्तों आज के समय में अगर किसी देश की शक्ति का आकलन करना हो तो देखा जाता है कि उसके अंतरिक्ष में कितनी पहुंच है।
इजराइल की सुरक्षा चिंताएं Israel security concerns
1989 इजरायल ने अंतरिक्ष में पहला जासूसी उपग्रह छोड़ा इसके साथ इजरायल आठ देशों के उस समूह में शामिल हो गया है जिनके पास स्वतंत्र रूप से उपग्रह प्रक्षेपण की क्षमता है आज की तारीख में इसराइल सेटेलाइट लांच के मामले में काफी आगे निकल चुका है अभी अंतरिक्ष में उसके 8 जासूसी उपग्रह है कहा जाता है कि दुनिया भर में इस्राइल के जासूसी उपग्रह का कोई जवाब नहीं है।
साल 2000 में इजरायल एयर फोर्स को पहली ऑपरेशन एरो मिसाइल बैटरी मिली थी इस ऑपरेशन के साथ इज़राइल दुनिया का पहला देश बन गया था जिसने दुश्मन देश के मिसाइल को रास्ते में ही नष्ट करने की क्षमता हासिल कर ली इजराइल के ऐरो का आईडीया अपने आप में कमाल का था ये देश क्षेत्रफल के मामले में बहुत छोटा देश है जिसके पास खाली जमीन न के बराबर है इसके बाद किसी भी दुश्मन देश ने मिसाइल दागा भी तो वो सिबिलियन को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
यह मिसाइल बैलिस्टिक मिसाइल की तुलना में काफी प्रभावी है इजराइल दुनिया भर में अपने मरकावा ट्रैक के लिए भी जाना जाता है इसे IDF यानि इस्राएली डिफरेंस स्पोर्ट्स में 1979 में शामिल किया गया था इसे पूरी तरह से इसराइल ने अपने घर में ही विकसित किया है IDF में करीब 1600 मरकवा टैंक है इसराइली एयरफोर्स के पास F1–51 थंडर लड़ाकू विमान है मिडलीस्ट में F1–51 को काफी घातक लड़ाकू विमान माना जाता है इसमें हवा से हवा में मार करने की क्षमता है।
इजरायल के पास से जरीको परमाणु प्रतिरोधक क्षमता वाली मिसाइल है पूरी दुनिया में इजरायल के साथ हांगकांग और दक्षिण कोरिया के इकोनॉमी में को सबसे अस्थिर माना जाता है ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां महंगाई दर 0 है जबकि बेरोजगारी ना के बराबर है इजरायल की कुल जीडीपी 318.7 अरब डॉलर है। और इसकी वृद्धि दर लगभग चार फीसद के आसपास है इजरायल कभी भी ये एक्सेप्ट नहीं करता कि उसके पास परमाणु शक्ति है लेकिन माना जाता है कि 1970 के आसपास यह एटॉमिक पावर हासिल कर चुका है।
अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन स्थित आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार इजरायल के पास कुल 80 परमाणु हथियार हैं यही कारण है कि इस से पंगा लेने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता दोस्तों अब हम आपको बताने जा रहे हैं इजराइल के उस खासियत के बारे में जिसके बारे में जाने बगैर इजरायल को जानना अधूरा है जी हां हम बात कर रहे हैं किलिंग मशीन मोसाद की मोसाद इजरायल की खुफिया एजेंसी है।
ईरान इजराइल युद्ध का ऐतिहासिक संदर्भ Historical context of Iran Israel war
मोसाद को सीक्रेट ऑपरेशन को अंजाम देने में दुनिया की टॉप खुफिया एजेंसी माना जाता है मोसाद अपने दुश्मनों को उनके ही देश में घुसकर चुन-चुनकर मारने के लिए जानी जाती हैं आमतौर पर ऐसे आप्रेशन को अंजाम देना बेहद ही कठिन होता है लेकिन बस आपको ऐसे अभियानों में महारत हासिल है कहा जाता है कि मोसाद अपना निशाना कभी नहीं चूकता क्योंकि अपना मिशन पूरा करने के लिए पहले मोसाद के एजेंट अपने टारगेट को लेकर पूरी रिसर्च करते हैं।
साथ ही मिशन को अंजाम देने के बाद की परिस्थितियों से निपटने का भी पूरा इंतजाम पहले से करके रखते हैं 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में फिलिस्तीन के आतंकवादियों ने इस्राइली ओलंपिक टीम के 11 खिलाड़ियों की बंधक बना कर हत्या कर दी थी मौसाद ने अपने अगले 20 सालों में सभी आतंकियों को चुन-चुनकर मार डाला इसी तरह 1976 में अरब के आतंकवादियों ने जब इजराइल के तेल अवीव से पेरिस जा रहे फ्रांसीसी विमान को हाईजैक कर लिया और उसे युगांडा ले गए। तब मोसाद ने युगांडा में घुसकर ऑपरेशन थंडरबोल्ट चलाकर सब को छुड़ाया यह दुनिया का सबसे खतरनाक ऑपरेशन माना जाता है।
अब हम आपको उस लड़ाई के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने दुनिया को इजरायल से परिचय कराया इसराइल और अरब देशों के बीच लड़ाई दस जून 1967 को खत्म हुई थी इस युद्ध में इजरायल ने 8 अरब देश इजिप्ट, सीरिया,जॉर्डन, इराक, कुवैत, सूडान अल्जीरिया यमन और सऊदी अरब को अकेले दम पर सिर्फ 6 दिनों में हरा दिया था सोवियत संघ के उकसाने पर इजिप्ट के राष्ट्रपति कर्नल नासिर और बाकी अरब देशों ने 5 जून 1967 को इजरायल पर हमला कर दिया।
नासिर का मानना था कि इसराइल के पास हवाई हमले की क्षमता नहीं है हार के बाद इजिप्ट के कई बड़े सैन्य अधिकारीयों ने कहा था कि मिस्र ने इजरायल को हराना बच्चों के खेल जैसा समझा लेकिन सब का दांव उलटा पड़ गया और अंत में अपने हरे क्षेत्र को पाने के लिए सबको इजरायल के आगे नाक रगड़नी पड़ी 11 जून को युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर हुए और लड़ाई खत्म हुई लेकिन इस जीत से इजराइल ने दुनिया को हैरान कर दिया।
इससे इजरायली लोगों का मनोबल तो बढ़ा ही दुनिया में इसकी इज्जत भी बढ़ी लड़ाई में इजरायल ने इजिप्ट से गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप पर जॉर्डन से और वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम और सीरिया से गोल्डन हाइट्स की पहाड़ियों को छीन लिया था अब सिनाई प्रायद्वीप इजिप्ट का हिस्सा है जबकि वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी फिलिस्तीन इलाके हैं।
जहां फिलिस्तीन राष्ट्र बनाने की मांग बराबर उठ रही है दोस्तों भारत और इज़राइल आज भले ही बहुत अच्छे दोस्त थे लेकिन भारत ने यह बहुत ही समय बाद इसराइल को मान्यता दी थी पहले भारत किसी भी गुट में नहीं था लेकिन उसका झुकाव सोवियत संघ की तरफ था लेकिन सोवियत संघ के पतन के बाद भारत ने अमेरिका की तरफ रुख किया और उस समय यह बात बहुत फेमस थी कि अमेरिका का रास्ता इजराइल से होकर जाता है।
और भारत में इसी रास्ते को चुना इज़राइल भारत के लिए दो कारणों से काफी अहम है एक तो इसकी टेक्नोलॉजी और आतंकवाद से लड़ने की क्षमता और दूसरी पश्चिमी देशों में यहूदियों की तगड़ी लॉबिंग और भारत को दोनों चीजों की जरूरत है।
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